हे सीते ! मैं तुम्हारी सखी ! तुम्हारे रुदन को अपने हर्दय में समाये हुए हूँ ! क्योंकि मैं एक नारी हूँ ! और एक नारी ही नारी के दर्द को समझ सकती है ! केकई के राजा दशरथ से वरदान पाने पर, तुम्हारे प्राण प्रिय श्री राम को वनवास मिला था ! तुमने तनिक न संकोच किया !
हे सखी ! तुम श्री राम के साथ वन को चली गई ! पग-पग साथ निभाने का प्रण जो किया था तुमने ! केकई भी एक नारी थी ! इतिहास गवाह है ! कि नारी ही नारी कि दुश्मन है ! केकई ने भी अपने पुत्र के मोह वश ये सब किया !.....
जब तुम्हारे प्राण प्रिय तुमें वन में अकेला छोड़ गए थे ! फिर जब रावन ने तुम्हारा अपहरण किया था ! उस पल तुम्हारे हर्दय में कितना करुण रुदन था ! आँखों से अविरल धारा बह रही थी ! हे राम हे राम कहते-कहते तुम्हारे अधर सूख गए थे ! खुद को तुमने कैसे संभाला था !......
हे सीते पति रूप मैं तो तुम्हारे राम बसे थे ! मधुर प्रेम तो तुमने अपने तीनो लोकों के स्वामी राम को ही किया था ! तुम्हारा वो पल-पल राम के वियोग में झुलसना ! और बार-बार ये कहना ! कि हे राम तुम्हारे वियोग में ये सीता अधूरी है ! तुम जल्दी सुध क्यों नहीं लेते ! क्या यूँ ही ये जीवन कटेगा !......
हे सीते तुम तो पतिव्रता नारी थी ! अगर एक श्राप दे देती दुष्ट रावण को ! तो वो वहीँ भष्म हो जाता ! पर तुमने तो ये वियोग सहकर एक अमर गाथा का अनावरण किया ! श्री राम के हांथों रावण का उद्धार जो कराना था तुम्हें ! हे सीते तुम्हारे त्याग को एक नारी ही समझ सकती है ! क्योंकि नारी त्याग कि देवी होती है !.........
हे सखी अकेले वो दिन रैन कैसे काटें होंगे तुमने ! हे सखी श्री राम का हर्दय इतना कठोर कैसे हो गया ! जो तुम्हें लंका से लाने के बाद ! एक धोबी के कहने पर इतने घने जंगल में छोड दिया ! ये कैसा राम राज्य था ! जो हर दिन तुम्हारे लिए एक कठिन डगर का निर्माण करता था ! और तुम उस राह पर चलना सहर्ष स्वीकार कर लेती थी ! हे सीते तुमने कोई विरोध क्यों नहीं किया ! तुम हर कसक को निर्विरोध सहती रहीं कैसे ?.........
तुम्हारे व्यतिथ मन की पीड़ा को श्री राम ने क्यों न समझा ! तुमने अपने हर्दय में अपार कष्ट लेकर भी, लव कुश को जन्म दिया ! उनकी मुस्कान को देख-देख कर तुम जिन्दा रही ! हे सखी ये तुमने कैसे सहा होगा ! कितना दर्द ,कितनी असहनीय पीड़ा होगी ! में सब समझती हूँ ! सीते क्योंकि मैं तुम्हारी सखी हूँ ! तुम्हारी आत्मा की वो आवाज मैंने भी महसूस की है !.......
हे सखी तुमने प्रजा के लिए, अपने श्री राम के रामराज्य के लिए ! असीम दुखों को झेला है ! मैंने तुम्हारे आंसुओं को पढ़ा है ! हे सीते तुमने अपने प्रिय को, त्याग की परिभाषा समझाई है ! निश्चित ही तुम त्याग की मूर्ति थी ! एक पतिव्रता और सहनशील नारी थी तुम ! आज भी इस देश की नारियाँ तुम्हारे पदचिन्हों पर चल रहीं है !........
हे सीते जब श्री राम ने तुम्हारी परीछा ली , तो तुम धरती माता की गोद में समां गई ! पर आज के युग की सीता के लिए तो धरती माता की गोद भी खाली नहीं है ! जो धरणी फट जाये ! और माँ की गोद में सदा के लिए सो जाये ! हर युग में सीता होगी ! हर युग में राम अवतार लेंगे ! और हर युग में सीता छली जायेगी ! हर युग में रावन पैदा होगा ! और हर बार रावन मारा जायेगा ! पर क्या सीता को वो सुख मिल पायेगा ! जो वो अपने पिता के घर में भोगती थी !.......
हे सीते इस कलयुग में भी नारी अपने पिता का घर छोड़ कर अपने नए घर को सजाती है ! सवारती है ! पर सतयुग, द्वापरयुग,त्रेतायुग,मध्ययुग,कलयुग ! इन सारे युगों में सीता जैसी पतिवर्ता नारी हर पल छली गई है ! सो हे सखी तुमने तो श्री राम की अर्धांग्नी बनकर हम नारियों को जो सीख दी है ! उस मौन सीख के रिणी है हम ! हे सीते तुम्हारे मूक त्याग को ये संसार के प्राणी भले न समझे ! मैंने तुम्हारे दर्द को सहा है ! हे सीते तुम्हारी उदारता, तुम्हारे त्याग, तुम्हारे आदर्श की कोई दूसरी व्याख्या ही नहीं है !.........
( तुम्हारी सखी )
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