प्रकृति की सच्चाई भी यही है कि स्त्री बिना पुरुष के अधूरी है
स्त्री जब प्रकृतिप्रदत्त अपने अमूल्य गुणों को त्यागकर पुरुष की भांति आचरण करने का दिखावा और पुरुष की भॉंति दिखने को ही उच्च वर्ग का समझते हुये उन कार्यों को करती है जो उसकी मर्यादा के खिलाफ हैं तो वो अपने स्वाभाविक स्त्रैण गुण को खोने के साथ-साथ कभी भी पौरुष गुणों को अपनी देह में स्वीकार या अपना नहीं पाती है.
हाँ मुझे सुकूं देती है, ये मेरी शख्सियत, जो सिर्फ तुमसे बनी है मुझे सुकूं देता है, भोर की लालिमा को देर तक निहारना मुझे सुकूं देता है, तुम्हारा मुस्कराकर, मेरा ध्यान अपनी ओर खींचना मुझे सुकूं देता है, छुट्टियों में पहाड़ी इलाकों की सैर करना मुझे सुकूं देता है, अपनी ससुराल गाँव में जाकर तुम्हारे बचपन को जीना मुझे सुकूं देता है, खून और धर्म के रिश्तों को बांधकर रखना मुझे सुकूं देता है, तुमसे कद में छोटा बने रहना |
प्रकृति की सच्चाई भी यही है कि स्त्री बिना पुरुष के अधूरी है l
लेकिन अक्सर महिलायें पुरुषों से मुकाबला करने के चक्कर में इस सुखद अनुभूति से वंचित रह जाती हैं l धीरे - धीरे जिन्दगी से खुशियाँ दम तोड़ने लगती है l महिला - पुरुष समानता हर नारी चाहती है और मैं भी चाहती हूं लेकिन, ऐसी समानता नहीं l अपने आपको पुरुष से कम न मानने वाली सुशिक्षित और आधुनिका कहलानें वालीं ऐसी स्त्रियों की पीड़ा बहुत ही मार्मिक है l स्त्री जब प्रकृतिप्रदत्त अपने अमूल्य गुणों को त्यागकर पुरुष की भांति आचरण करने का दिखावा और पुरुष की भॉंति दिखने को ही उच्च वर्ग का समझते हुये उन कार्यों को करती है जो उसकी मर्यादा के खिलाफ हैं तो वो अपने स्वाभाविक स्त्रैण गुण को खोने के साथ-साथ कभी भी पौरुष गुणों को अपनी देह में स्वीकार या अपना नहीं पाती है l इन स्थितियों में स्त्री का अवचेतन न तो सम्पूर्णता से स्त्रैण ही रह पाता है और न हीं पौरुष गुणों को समाहित कर पाता है l नारीत्व के इन गुणों से रिक्त ऐसी स्त्री में विश्वास, कोमलता, निष्ठा, प्रतीक्षा, सरलता, नम्रता, उदारता, समर्पण, माधुर्य,सुघड़ता, दयालुता आदि नैसर्गिक गुण धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं l जिस कारण वश से दाम्पत्य सुख का बिखराव शुरू हो जाता है जो सफल दाम्पत्य के लिये अपरिहार्य होते हैं l प्रकृति की सच्चाई भी यही है कि स्त्री बिना पुरुष के अधूरी है l.....
सुनीता दोहरे
प्रबंध सम्पादक / इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़