आजादी का सही अर्थ वही समझ सकता है जिसने गुलामी के दिन झेले हों ( ये कैसी आजादी और कैसा अमनओ सुकून )

पहले चंद गोरों ने इस देश पर राज किया आज चंद पैसे वाले इस देश पर राज कर रहे है। नियम, कायदा, कानून पहले भी गरीबों के लिए थे और आज भी गरीबों के मत्थे मढ़े जाते हैं अमीर और रसूख वाले लोग तो आज भी कानून को अपनी उँगलियों पर नचाते हैं

आजादी का सही अर्थ वही समझ सकता है जिसने गुलामी के दिन झेले हों ( ये कैसी आजादी और कैसा अमनओ सुकून )
पहले चंद गोरों ने इस देश पर राज किया आज चंद पैसे वाले इस देश पर राज कर रहे है। नियम, कायदा, कानून पहले भी गरीबों के लिए थे और आज भी गरीबों के मत्थे मढ़े जाते हैं

आजादी के इस महापर्व में कई महान देश भक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दी है तब जाकर यह हमें प्राप्त हुई है l आजादी का सही अर्थ वही समझ सकता है जिसने गुलामी के दिन झेले हों l एक लंबी और कष्टप्रद लड़ाई के बाद देश को आजादी तो मिली, लेकिन भारत के वाशिंदों को ऐसा एहसास कि “वे पूरी तरह से स्वतंत्र हैं” उन्हें अभी तक महसूस नहीं हुआ है देखा जाए तो आजादी के साढ़े छह दशकों के बाद भी जब महंगाई, भ्रष्टाचार, स्वास्थ्य, शिक्षा, अपनी छत, पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसी तमाम समस्याओं को छुटकारा न दिलाने वाले मक्कार हों तो फिर कैसी आजादी और कैसा अमनओ सुकून !

सांप्रदायिक विद्वेष के दम पर लोगों का वोट बटोरने के लिए भावनात्मक शोषण करने वाले इस देश के रोजनेताओं ने शोषण और दमन की नीतियों को अभी तक बरकरार रखा है आम जनता की परेशानियों से उन्हें कोई सरोकार ही नहीं रहा l  

देखा जाए तो पहले चंद गोरों ने इस देश पर राज किया आज चंद पैसे वाले इस देश पर राज कर रहे है। नियम, कायदा, कानून पहले भी गरीबों के लिए थे और आज भी गरीबों के मत्थे मढ़े जाते हैं अमीर और रसूख वाले लोग तो आज भी कानून को अपनी उँगलियों पर नचाते हैं l आज एक जुर्म करने के लिए एक अमीर आदमी को तो कुछ घंटों की सजा या फिर बिना सजा के ही छोड़ दिया जाता है लेकिन एक गरीब आदमी को छोटे से छोटे जुर्म या कभी जो जुर्म उसने किया भी ना हो उसकी सजा भी दे दी जाती है आज भी हम मानसिक गुलामी के अदृश्य पाश में जकडे हुए हैं। शायद इसी वजह से आजादी के वर्षो बाद भी लोग इसके असली मायने समझने में असमर्थ हैं।

देखा जाए तो चंद हाकिमों ने प्रशासनिक मशीनरी को भ्रष्टाचार में लिप्त रहने दिया और एन्फोर्समेंट एजेंसियों को पूर्णतः भ्रष्ट बने रहने के लिए खुला छोड़ दिया ऐसी स्तिथि में भारतीय जन मानस के दुख दर्दों को देखने सुनने वाला कोई नही रहा, शासन और सत्ता निरंकुश होती गई, वोट को भ्रष्ट तंत्र के औजार के रूप में परिवर्तित कर दिया गया जिसके चलते हमारे सामने उभर कर आया भारत की आजादी का ये असल स्वरूप !

कई वर्षों की गुलामी सहने और लाखों देशवासियों का जीवन खोने के बाद हमने यह बहुमूल्य आजादी पाई है लेकिन आज के ये राजनेता, पुलिस प्रशासन और दबंग व्यक्तित्व के ब्यक्ति आजादी का वास्तविक अर्थ भूलते जा रहे हैं रक्षक ही भक्षक बना बैठा है। क्या हम अब भी यही कहेगें कि हम आजाद है क्या सिर्फ अपने तरीके से जीवन जीना आजादी है ? नहीं न तो फिर आजादी क्या है और इसके क्या मायने है? हमें इसे समझना होगा अगर हम इसे नहीं समझेंगे तो संसद में बैठे ये नेता इस बात को बेहतर तरीके से समझते हुए सही मायने में इसका फायदा उठाते रहे हैं और उठाते रहेंगे.

देश आज भी रोटी, कपड़ा, मकान के साथ साथ स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार की समस्या से बुरी तरह व्यथित है यह शर्मनाक स्थिति विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जाने वाले देश के योजनाकारों, नीति निर्धारकों और नौकरशाहों को तनिक भी परेशान नहीं करती l आखिर क्यों? मैं पूछना चाहूंगी इन सत्तासीन नेताओं, नीति निर्धारकों से क्या प्रत्येक भारतीय को रहने के लिए अपना मकान, स्वास्थ्य सुविधा, बुनियादी स्कूली शिक्षा, रोज दो शाम का खाना, और इसके साथ ही क्या प्रत्येक भारतीय व्यस्क को साल में 180 दिनों का रोजगार मिल पाता है!

इतना सब देखने सुनने के बाद सच कहूँ तो अब 15 अगस्त का दिन मेरे अदंर कोई जोश पैदा नही करता बल्कि ये एक सार्वजनिक छुट्टी का दिन लगता है। और ये भी सत्य है की राजनेता इस दिन को तिरंगा फहरा कर एवं उसे सलामी देकर सिर्फ खानापूर्ति करते है। आज राजनेताओं का अस्तित्व सिर्फ आवाम को उपदेश देने के लिए रह गया उस पर अमल करने के लिए नही। इन राजनेताओं की सच्ची श्रद्धा पैसों के प्रति है अपना घर भरने की लालसा ने इन्हें इतना छोटा कर दिया है कि ये लात मारकर गरीबों के हक़ की रोटी अपनी थाली में परोस लेते हैं l आजादी का अर्थ है विकास के पथ पर आगे बढकर देश और समाज को ऐसी दिशा देना, जिससे हमारे देश की संस्कृति की सोंधी खुशबू चारों ओर फैल जाए.

हमें सरकार नहीं व्यवस्था बदलनी चाहिए नई सरकार आई नही कि चिल्लाने लगे “इस सरकार ने कुछ नही किया ये बेकार है” ऐसा सोचना ही था तो वोट देते समय सोचना चाहिए था ! अब आते हैं मुद्दे पर, आप अगर ये सोच रहे हैं क़ि कोई मसीहा आएगा और सब बदल देगा तो आप बेवकूफियों से भरी ग़लतफ़हमी में जी रहे हैं | कोई बजरंगबली या कोई अवतारी आ जायेंगे तो ये आपका भ्रम है सत्य तो ये है कि आपको और हमको ही भगवान के अवतार में सड़कों पर उतर कर इस व्यवस्था को जड़ से ख़तम करना होगा आपने ये कहावत तो सुनी ही होगी कि भगवान भी उसी की मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं करता है |

जहाँ तक मैं समझती हूँ कि देश को शायद आज एक नए स्वतंत्रता संग्राम की जरूरत है तो फिर क्यों न हम शपथ लें कि हम अपने राष्ट्र और राष्ट्र की आवाम के प्रति सदैव बफादार रहेंगे l मेरे हिसाब से आजादी का मतलब एक ऐसे राष्ट्र निर्माण से है जहॉ लोग खुशी से अपनी जिदंगी बसर कर रहे हो, जहॉ कोई भूखे पेट नही सोता हो, हरेक हाथ को काम हो, जहॉ सभी को बराबर का दर्जा दिया जाता हो। हम सभी इसी तरह के राष्ट्र निर्माण की कल्पना करते हैं हमें देश को भ्रष्टाचार, गरीबी, नशाखोरी, अज्ञानता से आजादी दिलाने की कोशिश करनी चाहिए यदि हम चाहते हैं कि हमारा देश तरक्की करे तो सबसे पहले हमें अपने काम के प्रति ईमानदार, साहसी, सहनशील और प्रतिबद्ध होना होगा देश सही मायने में आजाद हो इसके लिए हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करे। …………. !!!! जय हिन्द !!!!

सुनीता दोहरे 
प्रबंध संपादक / इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़
महिला अध्यक्ष /शराबबंदी संघर्ष समिति