बिहार, उत्तर प्रदेश प्रवासी मजदूर कोविड ओमिक्रॉन के कारण मुंबई छोड़ रहे : बोले- लॉकडाउन लगा तो यहां भूखे मर जाएंगे

लॉकडाउन के डर से एक रात पहले ही स्टेशन पहुंचे लोग l तीसरी लहर में कैसे घर जाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं लोग l रेलवे स्टेशन पर प्रवासियों को पुलिस के डंडे खाने पड़े, ट्रेन का टिकट भी नहीं मिला। इसके बावजूद वे वहां से नहीं हिले।

बिहार, उत्तर प्रदेश प्रवासी मजदूर कोविड ओमिक्रॉन के कारण मुंबई छोड़ रहे : बोले- लॉकडाउन लगा तो यहां भूखे मर जाएंगे
बिहार, उत्तर प्रदेश प्रवासी मजदूर कोविड ओमिक्रॉन के कारण मुंबई छोड़ रहे हैं

मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिनस पर उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी मजदूर डेरा जमाए हैं। महामारी की तीसरी लहर में एक बार फिर ऐसा ही नजारा दिख रहा है। यहीं से उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वाली ज्यादातर ट्रेनें रवाना होती हैं। मुंबई के प्रवासियों में बड़ी संख्या इन्हीं इलाके के लोगों की है।

लॉकडाउन के डर से एक रात पहले ही स्टेशन पहुंचे लोग l तीसरी लहर में कैसे घर जाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं लोग l रेलवे स्टेशन पर प्रवासियों को पुलिस के डंडे खाने पड़े, ट्रेन का टिकट भी नहीं मिला। इसके बावजूद वे वहां से नहीं हिले। वजह साफ थी.. अगर मुंबई में लॉकडाउन लग गया, तो वे भूखे मर जाएंगे। ऐसे में सबकी कोशिश है कि कैसे भी लॉकडाउन से पहले अपने गांव-अपने घर पहुंच जाएं। मुंबई में पिछले 24 घंटे में कोरोना के 20 हजार से ज्यादा केस मिले हैं। ऐसे में लॉकडाउन की आशंका से प्रवासी और खासतौर पर मजदूर बेहद डरे हुए हैं। मुंबई के लोकमान्य टर्मिनस पर भीड़ बढ़ने लगी थी। इसमें ज्यादातर मजदूर वर्ग के लोग थे, जो शुक्रवार सुबह की ट्रेन के लिए लॉकडाउन के डर से देर रात ही स्टेशन पहुंच जाए थे। उनका कहना था कि यहां रुके तो भूखों मरने की नौबत आ जायेगी। ऐसे में यहां रहकर क्या करें?

सिर पर सामान लादकर ही स्टेशन पहुंच रहे लोग l रात से भीड़ के बढ़ने का सिलसिला जो शुरू हुआ वो सुबह भी जारी रहा। धीरे धीरे रात को भीड़ बढ़ने लगी। सिर पर बोरा, बैग और अटैची, बाल्टी लिए मजदूर लोग लोकमान्य तिलक टर्मिनस पहुंचने लगे। ज्यादातर की ट्रेन सुबह 5.25 बजे या उसके बाद की थीं, लेकिन लोग लॉकडाउन की दहशत के बीच रात को ही स्टेशन पहुंच गए। स्टेशन के अंदर जाने लगे तो पुलिस ने अंदर नहीं जाने दिया। पुलिस ने उन्हें डंडे का जोर दिखाया और कहा, 'क्यों चले आते हो बिहार-UP से, जब भागना ही होता है।' बेबस लाचार मजदूर स्टेशन के सामने बैठ गए। ट्रेन सुबह थी। रात को पहुंचे तो चिंता टिकट की थी। टिकट किसी के पास नहीं। सभी ने प्लान किया की जनरल में चढ़ जाएंगे। TC आएगा तो चालान कटवा लेंगे। यही तय करके मजदूर प्लेटफॉर्म्स की तरफ बढ़े.

जैसे जैसे रात बढ़ती गई लोकमान्य तिलक स्टेशन के बाहर UP-बिहार के सैकड़ों लोगों का डेरा दिखाई देने लगा। भूखे-प्यासे सब इसी चिंता में थे की किसी तरह घर पहुंच जाए। कोई लेटा था, तो कोई बैठा था। सबकी बातों, चेहरों और आंखों में एक ही सवाल था- घर कब पहुचेंगे? इस असमंजस की उनके पास वजहें भी थीं। ज्यादातर मजदूरों के पास न टिकट था और न खाना।

स्टेशन के बाहर और अंदर किसी तरह की स्कैनिंग नहीं हो रही थी और न ही सोशल डिस्टेंसिंग दिखाई पड़ी। कई लोगों ने मास्क भी नहीं पहने थे। कई लोग बगैर टिकट ही ट्रेन में सवार हो गए। चंद मिनटों में जनरल डिब्बे खचाखच भर गए। ऐसे में UP-बिहार की ये ट्रेनें कोरोना की सुपर स्प्रेडर बन सकती हैं। लोगों के डर और पलायन का यह सिलसिला जारी है। अगर लॉकडाउन की स्थिति बनती है, तो स्टेशन पर ऐसी कोई भी व्यवस्था नजर नहीं आई, जो आपात स्थिति से निपट सके। न डॉक्टर मौजूद थे, न सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा था और न ही मजदूरों की टेस्टिंग का कोई इंतजाम था।