जे एन तिवारी नामक फोबिया से ग्रसित है कुछ कर्मचारी नेता : खो चुके हैं अपना विवेक, कर्मचारियों का इस्तेमाल कर खेल रहे हैं राजनीतिक खेल
जे एन तिवारी ने मुख्यमंत्री द्वारा कर्मचारी हित में लिए गए निर्णयों का आभार व्यक्त किया था और लंबित मांगों का मांग पत्र भी सौंपा था। लेकिन कर्मचारी संगठनों के कुछ नेताओं को कर्मचारियों की बात मुख्यमंत्री तक पहुंचाने का मामला रास नहीं आया और उन्होंने जे एन तिवारी को पुरानी पेंशन का दुश्मन बताकर अपना उल्लू सीधा शुरू करना शुरू कर दिया।
लखनऊ : राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जे एन तिवारी ने एक प्रेस विज्ञप्ति में अवगत कराया है कि प्रदेश के कुछ कर्मचारी संगठनों के नेता जे एन तिवारी नामक फोबिया से ग्रसित हो गए हैं। उनको जे एन तिवारी का डर इतना सता रहा है कि राजनीतिक पार्टियों के शरण में चले गए हैं और अपने लिए टिकट की मांग करने लगे हैं । जे एन तिवारी ऐसे नेताओं के सपने में आकर उनको डराने लगे हैं।
मुख्य बातें
- पार्टियों से टिकट की मांग कर रहे हैं
- कर्मचारी और राजनीति के अंतर को भी भूल गए हैं
- कर्मचारियों की अन्य मांगों पर चुप्पी साधे हुए हैं
- पुरानी पेंशन का की आड़ लेकर चुनाव लड़ने की जुगाड़ में है कुछ संगठनों के नेता
- राजनीतिक पार्टियां नहीं दे रही है उनको टिकट
ज्ञातव्य है कि जे एन तिवारी ने विगत दिनों प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ से मुलाकात कर पुरानी पेंशन बहाली सहित कई मुद्दों पर बातचीत किया था। जे एन तिवारी ने मुख्यमंत्री द्वारा कर्मचारी हित में लिए गए निर्णयों का आभार व्यक्त किया था और लंबित मांगों का मांग पत्र भी सौंपा था। लेकिन कर्मचारी संगठनों के कुछ नेताओं को कर्मचारियों की बात मुख्यमंत्री तक पहुंचाने का मामला रास नहीं आया और उन्होंने जे एन तिवारी को पुरानी पेंशन का दुश्मन बताकर अपना उल्लू सीधा शुरू करना शुरू कर दिया। जिस पुरानी पेंशन के लिए यह सभी कर्मचारी नेता विगत 15 वर्षों से लड़ रहे थे बकौल इनके जे एन तिवारी की मुख्यमंत्री से एक मुलाकात से इनके सारे प्रयास धराशाई हो गए और जेब में आई हुई पुरानी पेंशन इनके जेब से निकलकर दूर चली गई। जे एन तिवारी की फोबिया से बचने के लिए उन्होंने बाकायदा राजनीतिक पार्टियों की शरण ले ली है और अपनी सुरक्षा के लिए राजनीतिक पार्टियों से अपने लिए टिकट की मांग कर रहे हैं ।
आज प्रदेश के कर्मचारियों को वेतन समिति 2016 की विसंगतियां लागू किया जाना ,नगर प्रतिकर भत्ता का भुगतान किया जाना, 18 महीने के बकाया एरियर का भुगतान किया जाना, रिक्त पदों को भरा जाना, सेवा नियमावली का प्रकाशन किया जाना, आउटसोर्सिंग /संविदा कर्मचारियों को नियमित किया जाना, एनएचएम में कार्य करने वाले कर्मचारियों को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाना ,एसजीपीजीआई से निकाले जा रहे हैं आउटसोर्स कर्मचारियों को सेवा में रखा जाना , कर्मचारियों की अधिवर्षता आयु 62 वर्ष किया जाना सहित तमाम मुद्दे इन नेताओं के लिए जरूरी नहीं रह गए,इनके राजनीति लाभ में यह मुद्दे पीछे छूट गए हैं। इन मुद्दों को उठाने वाले जे एन तिवारी आज राजनीतिक शरण लेने वाले कर्मचारी नेताओं की नजर में खलनायक नजर आ रहे हैं ।
अब प्रदेश के कर्मचारियों के सामने स्थिति साफ हो गई है । कुछ नेता जे एन तिवारी के नाम का इस्तेमाल कर राजनीतिक पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं तथा राजनीतिक दलों से टिकट मांग कर अपने अपने स्वार्थ की राजनीति कर रहे हैं। कर्मचारियों को यह समझना होगा कि जो कर्मचारी नेता एमएलए का चुनाव लड़ना चाहता है वह कर्मचारी का हितैषी है या जो मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव तक कर्मचारियों की बात पहुंचाता है, उस पर विश्वास करना चाहिए। एक तरफ राजनीति में जाने वाले कर्मचारी नेता कहते हैं कि 13 लाख कर्मचारी उनके साथ है और दूसरी तरफ एक अकेले जे एन तिवारी का डर उनको इतना सता रहा है कि आए दिन जे एन तिवारी को उनके गुर्गों द्वारा फोन पर धमकियां दी जा रही है। जे एन तिवारी ने साफ किया है कि यदि धमकी देने वाले कर्मचारी नेताओं के गुर्गे उनकी हत्या भी कर दें तो उन्हें कोई डर नहीं है क्योंकि कर्मचारी के लिए उन्हें मरना पसंद है पर कर्मचारी की कीमत पर राजनीति करना पसंद नहीं है।
यह कैसी राजनीति है? लोकतंत्र में सबको अपना विचार व्यक्त करने का अधिकार है, अपना रास्ता चुनने का अधिकार है ,लेकिन प्रदेश के कर्मचारियों को अपनी जागीर समझने वाले कुछ कर्मचारी नेताओं की जमीन खिसकती नजर आ रही है तो उन्होंने जे एन तिवारी को टारगेट बना लिया जो सिर्फ और सिर्फ कर्मचारी हितों के लिए ही संघर्ष कर रहा है ।जे एन तिवारी ने कर्मचारियों की मांगों को मुख्यमंत्री जी तक पहुंचाया है, यह उनकी नजर में सबसे बड़ा गुनाह है। उनकी स्वयं की पैठ तो वहां तक है नहीं इसलिए वे नहीं चाहते हैं कि कर्मचारियों की मांगे मुख्यमंत्री जी तक पहुंचे और उनका समाधान जे एन तिवारी के माध्यम से हो।
संभव है कि कर्मचारियों की अहम मांगों को सरकार जल्दी पूरा भी कर दें अथवा आने वाले चुनाव के घोषणा पत्र में भी शामिल कर ले लेकिन यह बात उन कर्मचारी नेताओं को हजम नहीं हो रही है जो कर्मचारियों के नाम पर दुकानें चला रहे हैं । जे एन तिवारी ने प्रदेश के सभी कर्मचारियों से अपील किया है कि वह आंखे खोलें, अपने विवेक का इस्तेमाल कर स्वयं देखें कि उनका हित किसी संगठन के नेता विशेष को एमएलए बना देने में है अथवा कर्मचारियों की लड़ाई लड़ने वाले जे एन तिवारी का साथ देने में है ।
पल्लव शर्मा
सीनियर पत्रकार