उत्तर-प्रदेश कारागार विभाग : 35 लाख गबन के आरोपी व जांचकर्ता को मिला "गोल्ड मेडल" सजा देने के बजाए दे दिया गया तोहफा

उत्तर-प्रदेश कारागार विभाग के मुखिया आईजी जेल ने स्वतन्त्रता दिवस के मौके पर 98 जेल अधिकारियों व कर्मियों को मेडल दिए हैं l इसमें 39 अधिकारियों को गोल्ड व 59 कर्मियों को सिल्वर मेडल दिया गया है।

उत्तर-प्रदेश  कारागार विभाग : 35 लाख गबन के आरोपी व जांचकर्ता को मिला "गोल्ड मेडल" सजा देने के बजाए दे दिया गया तोहफा
उत्तर-प्रदेश कारागार विभाग

लखनऊ। राजधानी की जिला जेल में 35 लाख रुपये की नगद धनराशि गबन करने वाले अधीक्षक व मामले की जांच करने वाले डीआईजी जेल को आईजी के कमेंडेशन डिस्क के तहत गोल्ड मेडल दिया गया है। प्रदेश कारागार विभाग के मुखिया आईजी जेल ने स्वतन्त्रता दिवस के मौके पर  98 जेल अधिकारियों व कर्मियों को मेडल दिए है। इसमें 39 अधिकारियों को गोल्ड व 59 कर्मियों को सिल्वर मेडल दिया गया है।

दिलचस्प बात यह है कि मेडल के लिए विभाग की ओर से जो सूची जारी की गई है उसमें दर्जनों की संख्या में ऐसे अधिकारी है जो गंभीर आरोपों से घिरे हुए है। मामला विभागीय कर्मियों में चर्चा का विषय बना हुआ है। कयास लगाए जा रहे है कि निष्ठापूर्वक काम करने वालो के बजाय चहेते अधिकारियों को चयनित कर लिया गया।

स्वतन्त्रता दिवस के मौके पर प्रदेश कारागार विभाग के मुखिया ने उत्कृष्ट कार्य करने वाले अधिकारियों व कर्मियों को कमेंडेशन डिस्क के तहत गोल्ड व सिल्वर पदक देकर सम्मानित किया गया है। विभाग की ओर से जारी की गई सूची में पहला नाम विभाग में जांच में किसी अधिकारी- कर्मी के दोषी नहीं मिलने के लिए सुर्खियों में रहने वाले प्रयागराज जेल परिक्षेत्र के डीआईजी संजीव त्रिपाठी का है।

प्रयागराज व अयोध्या जेल परिक्षेत्र का काम देख रहे यह डीआईजी लखनऊ में ही बने रहते है। शासन ने संजीव त्रिपाठी को डीआईजी मुख्यालय से हटाकर प्रयागराज जेल रेंज में तैनात कर अयोध्या रेंज के अतिरिक्त प्रभार दिया गया।  यही नही इसके साथ ही उन्हें लखनऊ में बने रहने के लिए जेटीएस का भी अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। सूत्र बताते है कि दो रेंज की करीब दो दर्जन से अधिक जेलों के साथ जेटीएस का प्रभार होने से तीनों जगह की व्यवस्थाएं रामभरोसे ही चल रही है। चित्रकूट व बांदा जेल की घटनाएं इसका जीता जागता उदाहरण है।

बताया गया है बीते दिनों लखनऊ जेल में 35 लाख की बरामद होने की जांच इन्ही डीआईजी को सौंपी गई थी। डीआईजी ने आफिस में बैठकर स्टेनो से जांच कराई और मोटी रकम लेकर पूरे मामले को रफादफा कर निपटा दिया। इसके अलावा जेल के गल्ला गोदाम से 35 लाख बरामद करने वाले अधीक्षक आशीष तिवारी के आधीन आदर्श कारागार से दो कैदियों की फरारी, वसूली के लिये जेल अस्पताल में बन्दी की जमकर पिटाई व उत्पीड़न की लगातार शिकायत मिल रही है।

एक बन्दी की माँ ने तो इसकी शिकायत डीजी जेल से भी की। इसके अलावा जेल अधिकारियों की वसूली व उत्पीड़न से त्रस्त आकर दो बन्दियों के  फांसी लगाकर जान देने की घटनाओं के बाद इनके खिलाफ कार्यवाही करने के बजाए इन्हें गोल्ड मेडल सम्मान दिया गया। इन चयनित नामो ने लिस्ट पर सवाल खड़े कर दिए है। लिस्ट की जांच कराई जाए तो बहुत से रोचक मामले सामने आएंगे। उधर मुख्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नामों का चयन एसीआर के आधार पर किया गया है। हकीकत यह है कि इस विभाग में सुविधा शुल्क लेकर एसीआर लिखी जाती है। यही नही डिप्टी जेलर की एसीआर जेलर तक लिख देता है।

विवादित अफसरों को कर दिया गया पुरस्कृत

लखनऊ। मुजफ्फरनगर में विवादों के बीच साढ़े चार साल रहकर जिला जेल वाराणसी गए अधीक्षक अरुण सक्सेना, बगैर अधीक्षक पांच साल तक जिला जेल वाराणसी से मैनपुरी पहुचे जेलर पवन त्रिवेदी, साढ़े चार साल अलीगढ़ में रहकर शाहजहांपुर पहुचे डिप्टी जेलर संजय शाही को गोल्ड मेडल दिया गया है। इसी प्रकार एटा से खीरी पहुचें विवादित अधीक्षक पीपी सिंह, चार साल शाहजहांपुर में विवादों में रहे मेरठ पहुचें अधीक्षक राकेश वर्मा, पश्चिम की जेलो में डेरा जमाए मेरठ के जेलर मनीष कुमार, सहारनपुर जेलर राजेश पांडे प्रथम व नोएडा जेल में वसूली के लिए चर्चित हेड वार्डर शमशुद्दीन को सिल्वर मेडल दिया गया है।

राकेश यादव
स्वतंत्र पत्रकार
लखनऊ
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