डिप्टी सीएम की छोड़िए, यहां सीएम की नहीं सुनी जाती, फाइलों में कैद हुआ जेलकर्मियों का पौष्टिक आहार भत्ता, शासन में बैठे जेल विभाग के अफसरों की तानाशाही
विभाग के अफसर डिप्टी सीएम की सिफारिश मानते नही वहीं सीएम के आदेश का अनुपालन ही नही करते है। यही वजह है कि प्रदेश के हज़ारों जेलकर्मी बीते चार साल से पौष्टिक आहार भत्ता मिलने की आस लगाए बैठे है।
लखनऊ : सरकार में बैठी नौकशाही बेलगाम हो गयी है। इस सरकार में डिप्टी सीएम की छोड़िए सीएम की नही सुनी जाती है। यह बात आपको सुनने में भले ही अटपटी लगे किन्तु शासन की फाइलें इस सच की पुष्टि करती नज़र आती है। विभाग के अफसर डिप्टी सीएम की सिफारिश मानते नही वहीं सीएम के आदेश का अनुपालन ही नही करते है। यही वजह है कि प्रदेश के हज़ारों जेलकर्मी बीते चार साल से पौष्टिक आहार भत्ता मिलने की आस लगाए बैठे है।
मिली जानकारी के मुताबिक बीती दो अक्टूबर 2018 को प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुरानी जेल रोड पर नवनिर्मित जेल मुख्यालय भवन का उद्घाटन किया था। इस समारोह में शासन के आला अफसरों के साथ कारागार विभाग के अधिकारी मौजूद रहे। उद्घाटन की औपचारिक कार्यवाही के उपरान्त मुख्यमंत्री ने विभागीय अधिकारियों व कर्मचारियों को संबोधित किया। संबोधन में मुख्यमंत्री ने कहा कि पुलिस कर्मियों की तर्ज पर जेलकर्मियों को भी पौष्टिक आहार भत्ता दिया जाएगा। करीब चार साल पहले की गई घोषणा पर आजतक अमल नहीं हो पाया है।
सूत्र बताते है कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर तत्कालीन सचिव कारागार ने कार्यालय के पत्र से 31 जनवरी 2018 के क्रम में वित्त विभाग उत्तर प्रदेश शासन को पत्रावली प्रेषित की। इसमे जेल कर्मचारियों को पौष्टिक आहार भत्ता दिए जाने से संबंधित मामले में वित्त वेतन समिति से स्पष्ट आख्या सहित परामर्श कारागार विभाग ने मांगा था। वित्त वेतन समिति ने जेल कर्मचारियों को पौष्टिक आहार भत्ता अनुमन्य करने के संबंध में वित्त विभाग की वेतन समिति ने अपनी संस्तुति प्रमुख सचिव कारागार उत्तर प्रदेश शासन को प्रेषित भी कर दी। लेकिन वित्त वेतन समिति की रिपोर्ट के आधार पर अपर मुख्य सचिव कारागार उत्तर प्रदेश शासन उस पर निर्णय न लेते हुए पत्रावली दबाए हैं। ऐसा तब जब मुख्यमंत्री का निर्देश है कि जेल कर्मचारियों को पौष्टिक आहार भत्ता देने संबंधित मामले में लिए गए निर्णय से शासन को भी अवगत कराया जाए। शासन में बैठे आला अफसरों के लचर रवैये की वजह से मुख्यमंत्री की घोषणा पर अमल नही हो पाया है। बताया गया है कि बीते दिनों एक डिप्टी सीएम ने एक जेल अधिकारी के तबादले की सिफारिश की थी इसको भी विभागीय अधिकारियों ने अनसुना कर दिया। उधर जेल मुख्यालय के अधिकारी इसे शासन का मामला बताते हुए कोई भी टिप्पणी करने से बच रहे है।
लापरवाह जेल अफसरों पर दर्ज हो मुकदमा : राजधानी की जिला जेल में बगैर वारंट के जेल में बन्दी रखने वाले लापरवाह अधिकारियों पर मुकदमा दर्ज होना चाहिए। अधिकारियों पर इलीगल डिटेंशन (अवैध निरुद्दी) की धारा 342 का मुकदमा बनता है। विभागीय जानकारों कहना है कि जेल न्यायिक अभिरक्षा में भेजे गए बन्दियों को रखने की संस्था है। जेल में बगैर वारंट के किसी भी बन्दी को रखा ही नही जा सकता है। हकीकत यह है कि दो कैदियों की फरारी, जेल के अंदर गल्ला गोदाम से 35 लाख की बरामदगी, बन्दी को पीट पीट कर मोटी रकम वसूल करने, बगैर किसी आदेश के जेलर के जेल में काम करने की शिकायत मिलने पर दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं होने से अधिकारी बेलगाम हो गए है। यही वजह है कि लखनऊ जेल में घटनाएं थमने का नाम नही ले रही है।
राकेश यादव
स्वतंत्र पत्रकार
लखनऊ
मोबाइल न. 7398265003