अफगानिस्तान में आज तालिबान का शासन आ चुका, अमेरिका से लेकर ब्रिटेन तक की सेनाएं देश छोड़ चुकी
दूसरे यूरोपीय देशों ने किसी तरह अपने दूतावासों में तैनात राजनयिकों को बचाकर निकाला है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर तालिबान है क्या और कैसे इसने एक पूरे देश पर कब्जा कर लिया
अफगानिस्तान में आज तालिबान का शासन आ चुका है। अमेरिका से लेकर ब्रिटेन तक की सेनाएं देश छोड़ चुकी हैं और दूसरे यूरोपीय देशों ने किसी तरह अपने दूतावासों में तैनात राजनयिकों को बचाकर निकाला है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर तालिबान है क्या और कैसे इसने एक पूरे देश पर कब्जा कर लिया जिसकी सुरक्षा का दावा दुनियाभर के देश कर रहे थे।
एक के ऊपर एक लदे लोग,प्लेन में बैठने के लिए मारामारी, काबुल एयरपोर्ट की ऐसी तस्वीरें डराती हैं l अफगानिस्तान के काबुल एयरपोर्ट पर अफरातफरी का माहौल है l देश से बाहर निकलने की मारामारी इस कदर है कि लोग विमान पकड़ने के लिए रनवे तक पहुंच गए। स्थानीय कर्मचारी के अनुसार, उन्हें हटाने के लिए फायरिंग करनी पड़ी. इन लोगों की मदद के लिए कोई एजेंसी या संस्था मौजूद नहीं है। उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। मानव इतिहास की एक बड़ी त्रासदी हम अपनी आंखों से घटते देख रहे हैं और तालिबान के आगे सरकारों ने जैसे घुटने टेक दिए हैं। करीब 20 साल बाद, अफगानिस्तान की कमान तालिबान के हाथ में आ चुकी है। लोग बस किसी तरह उस हुकूमत से बच निकलना चाहते हैं जिसने उन्हें आतंक के खौफनाक चेहरे से रूबरू कराया। अफगानी जनता उन दिनों को फिर से नहीं जीना चाहती। यही वजह है कि जब तालिबान का कब्जा बढ़ा तो जो निकल सकते थे, उन्होंने सामान बांधना शुरू कर दिया। पिछले कुछ दिनों से पलायन का दौर जारी है। |
क्या है तालिबान?
'तालिबान' शब्द का पश्तून में मतलब होता है ‘छात्र’ और इससे संगठन के सदस्यों की ओर इशारा किया जा रहा था जिन्हें मुल्ला मोहम्मद उमर का ‘छात्र’ माना गया। साल 1994 में उमर ने कंधार में तालिबान को बनाया था। तब उसके पास 50 समर्थक थे जो सोवियत काल के बाद गृहयुद्ध के दौरान अस्थिरता, अपराध और भ्रष्टाचार में बर्बाद होते अफगानिस्तान को संवारना चाहते थे। विदेश मामलों के जानकार कमर आगा बताते हैं कि तालिबान बहुत बड़ा गुट है जिसकी काउंसिल क्वेटा शूरा का हेडक्वॉर्टर पाकिस्तान के क्वेटा में है जो बलूचिस्तान की राजधानी है। संगठन के सारे लीडर वहीं रहते हैं और वहीं मिलते हैं।
अफगानिस्तान में कैसे फैला?
सितंबर 1995 में तालिबान ने ईरान से लगे हेरात पर कब्जा किया और फिर अगले साल 1996 के दौरान कंधार को अपने नियंत्रण में लिया और राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया। इसके साथ ही राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी को कुर्सी से हटा दिया। रब्बानी अफगानिस्तान मुजाहिदीन के संस्थापकों में से एक थे जिन्होंने सोवियत ताकत का विरोध किया था। साल 1998 तक करीब 90% अफगानिस्तान पर तालिबान काबिज था।
अफगान लोग क्यों विरोध में?
शुरुआत में अफगानिस्तान के लोगों ने तालिबान का स्वागत और समर्थन भी किया। इसे मौजूदा अव्यवस्था के समाधान की शक्ल में देखा गया। फिर धीरे-धीरे कड़े इस्लामिक नियम लागू किए जाने लगे। चोरी से लेकर हत्या तक के दोषियों को सरेआम मौत की सजा दी जाने लगी। समय के साथ रुढ़िवादी कट्टरपंथी नियम थोपे जाने लगे। टीवी और म्यूजिक को बैन कर दिया गया, लड़कियों को स्कूल जाने से मना कर दिया गया, महिलाओं पर बुर्का पहनने का दबाव बनने लगा।
अमेरिका के निशाने पर क्यों?
अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमले के बाद अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को तालिबान ने पनाह दे रखी थी। अमेरिका ने उससे ओसामा को सौंपने के लिए कहा लेकिन तालिबान ने इनकार कर दिया। इसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में घुसकर मुल्ला ओमार की सरकार को गिरा दिया। ओमार और बाकी तालिबानी नेता पाकिस्तान भाग गए। अमेरिका के अलावा यहां NATO के सुरक्षाबल भी तैनात हो गए।
अफगानिस्तान में कितने तालिबानी लड़ाके?
अमेरिकी सेना के देश छोड़ते ही तालिबान ने पूरे देश पर कब्जा कर लिया। यहां तक कि राष्ट्रपति अशरफ गनी को देश छोड़ने को मजबूर कर दिया। बीबीसी की रिपोर्ट में NATO के आकलन के हवाले से दावा किया गया है कि तालिबान आज पहले से ज्यादा मजबूत होकर उभरा है। अब इसमें 85 हजार लड़ाके शामिल हैं।
तालिबान के पास कितना पैसा और कहां से आता है?
तालिबान को पैसों की कोई कमी नहीं। हर साल एक बिलियन डॉलर से ज्यादा की कमाई होती है। एक अनुमान के मुताबिक, उन्होंने 2019-20 में 1.6 बिलियन डॉलर कमाए। तालिबान की इनकम के मुख्य जरिए इस प्रकार हैं
- ड्रग्स: हर साल 416 मिलियन डॉलर
- खनन: पिछले साल 464 मिलियन डॉलर
- रंगदारी: 160 मिलियन डॉलर
- चंदा: 2020 में 240 मिलियन डॉलर
- निर्यात: हर साल 240 मिलियन डॉलर
- रियल एस्टेट: हर साल 80 मिलियन डॉलर
- दोस्तों से मदद: रूस, ईरान, पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसे देशों से 100 मिलियन डॉलर से 500 मिलियन डॉलर के बीच सहायता