संपादकीय

खबरों और चैनलों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा और सबसे पहले खबर चलाने की होड़ ने समाचारों से उसकी आत्मा को खत्म करने का प्रयास किया है l वर्तमान में केवल सनसनीखेज और खुलासेदार खबरों को ही असल पत्रकारिता माना जाने लगा है

संपादकीय
आज का पत्रकार पत्रकारिता छोड़कर कहीं भटक सा गया है l आजकल तो पत्रकार किसी पार्टी के जीत से खुशी और हार से दुखी होने लगा है l

आधुनिक जीवन की बढ़ती व्यस्तताओं और बदलती शैली के मद्देनजर पत्रकारिता ने अपना कलेवर बदल लिया है। एक वक्त था जब पत्रकारिता एक मिशन मानी जाती थी। आज का पत्रकार पत्रकारिता छोड़कर कहीं भटक सा गया है l आजकल तो पत्रकार किसी पार्टी के जीत से खुशी और हार से दुखी होने लगा है l निश्चित ही आज देश में मीडिया का व्याप और प्रसार काफी बढ़ा है, परंतु दूसरी ओर उसका नैतिक और चारित्रिक पतन भी हुआ है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मान्यता प्राप्त मीडिया आज अपने ही आधारों से भटकता नजर आता है। पत्रकारिता के बदलते परिदृष्य में संदेशों को विभिन्न तरीके से जनसमूह के समक्ष पेश करने की होड़ मची है।

इस होड़ ने प्रयोग को बढ़ावा दिया है, जिससे समाचारों के प्रस्तुतीकरण का तरीका थोड़ा रोचक जरूर लगता है, लेकिन यह बनावटी है। इसके पीछे होने वाले तथ्यों के तोड़ मरोड़ और सनसनीखेज बनाने की प्रवृति ने कई विकृतियों को जन्म दिया है l आज भारत में हजारों पत्र-पत्रिकाएं निकलती हैं तो सैकड़ों न्यूज चैनल काम कर रहे हैं। यानी हर ओर से समाचारों का प्रवाह हो रहा है। खबरों और चैनलों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा और सबसे पहले खबर चलाने की होड़ ने समाचारों से उसकी आत्मा को खत्म करने का प्रयास किया है l वर्तमान में केवल सनसनीखेज और खुलासेदार खबरों को ही असल पत्रकारिता माना जाने लगा है। प्रतिस्पर्धा भरे माहोल में खबरों को मिर्च-मसाले के साथ पेश करना मजबूरी सा हो गया है.

देखा जाए तो राष्ट्रीय एकता को और मज़बूत करना पत्रकारिता की अनिवार्य शर्त होती है पत्रकार बनने से पूर्व हमे समझ लेना चाहिये कि यह मार्ग त्याग का है, जोड़ का नहीं। आज का पत्रकार ये सोचता है कि “केवल कलम या कैमरे से ही किसी की छवि बनाई या बिगाड़ी जा सकती हो” तो क्यों न ऐसा काम केवल खुद की बेहतरी के लिए किया जाए? आज की  सच्चाई है कि जब पत्रकार किसी मीडिया संस्थान में कदम रखता है तो उससे अपेक्षा की जाती है कि वह किसी मिशन भावना से नहीं, अपने मालिक की अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य करेगा। रोजी रोटी देने वाले नियोक्ता के हितो के अनुरूप काम करना ही इस दौर की पत्रकारिता है l

आज लोग पत्रकारिता को व्यवसाय के रूप में लेते हैं। कल तक जो कलमकार नेताओं के लिए काम करते थे, अब वे नेता बनाने या पोर्टफोलियो तक डिसाइड करवाने की हैसियत में आ गए। अगर इस पर लगाम न लगाई गई तो कल शायद ये भी खुद ही लोकतंत्र को चलाने या कब्जा करने की स्थिति में आ जाएं l ख़बरों को प्राप्त करना हर नागरिक का मौलिक अधिकार होता है । लेकिन ‘ घटना ’और ‘व्यक्ति’  के बीच ‘माध्यम’ बने पत्रकार अगर बिचौलिये-दलाल का काम करने लगे तो ऐसे तत्वों को पत्रकारिता से बाहर का रास्ता दिखाने हेतु प्रयास किए जाने की ज़रूरत है।

सच्चे भारतीय पत्रकार के लिए पत्रकारी केवल कला या जीविकोपार्जन का साधन मात्र नहीं होनी चाहिये। उसके लिए वह कर्तव्य-साधन की पुनीत वृत्ति भी होनी चाहिये क्योंकि अपने राष्ट्र में जन-जागृति का आवश्यक और अनिवार्य कार्य करना भारतीय पत्रकार का उत्तरदायित्व है। इस प्रोफेशन को अगर ईमानदारी से निभाया जाए तो यह तब भी समाज और देश का भला कर सकता है.

विपिन कुमार शर्मा
प्रधान सम्पादक
इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़