लखनऊ में किसान नेताओं ने भिठौली क्रासिंग के पास सड़क जाम किया, परिवर्तन चौक पर भी पहुंचे किसान
लखनऊ परिवर्तन चौक पर कम्युनिस्ट नेता अतुल कुमार अंजान के नेतृत्व में परिवर्तन पर मार्च निकालने के लिए पहुंचे लेकिन पुलिस ने रोक दिया। यहां किसानों के समर्थन में आम आदमी और सामाजिक कार्यकर्ता भी मौजूद थे। करीब एक घंटे तक नारेबाजी की गई।
भारत बंद का असर लखनऊ के सीतापुर हाईवे पर देखने को मिला। सोमवार को शहर में दावों के अनुरुप जहां बंद का असर नहीं दिखा, वहीं ग्रामीण अंचल में किसानों ने कई जगह जनसभाएं की। इसमें मॉल, बीकेटी, सीतापुर रोड, अर्जुनगंज सुलतानपुर रोड समेत कई इलाके शामिल हैं। लखनऊ परिवर्तन चौक पर कम्युनिस्ट नेता अतुल कुमार अंजान के नेतृत्व में परिवर्तन पर मार्च निकालने के लिए पहुंचे लेकिन पुलिस ने रोक दिया। यहां किसानों के समर्थन में आम आदमी और सामाजिक कार्यकर्ता भी मौजूद थे। करीब एक घंटे तक नारेबाजी की गई।
परिवर्तन चौक पर पुलिस ने रोका लखनऊ में सबसे ज्यादा असर भिठौली क्रासिंग के पास दिखा। यहां किसान नेताओं ने सीतारोड पर एक तरफ की सड़क जाम कर दिया। इसकी वजह से लोगों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। यहां आंदोलन का नेतृत्व भारतीय किसान श्रमिक जनशक्ति यूनियन के नेता कमलेश यादव के नेतृत्व में भिठौली क्रासिंग पर जाम लगा दिया। लखनऊ में एडवा की मधु गर्ग, किसान सभा के प्रवीण सिंह, भारतीय किसान यूनियन के हरनाम सिंह समेत कई लोगों ने आंदोलन का नेतृत्व किया। |
लखनऊ में सबसे ज्यादा असर भिठौली क्रासिंग के पास दिखा। यहां किसान नेताओं ने सीतारोड पर एक तरफ की सड़क जाम कर दिया। इसकी वजह से लोगों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। यहां आंदोलन का नेतृत्व भारतीय किसान श्रमिक जनशक्ति यूनियन के नेता कमलेश यादव के नेतृत्व में भिठौली क्रासिंग पर जाम लगा दिया। लखनऊ में एडवा की मधु गर्ग, किसान सभा के प्रवीण सिंह, भारतीय किसान यूनियन के हरनाम सिंह समेत कई लोगों ने आंदोलन का नेतृत्व किया।
36 जिलों में बंद का व्यापक असर : लखनऊ आंदोलन का नेतृत्व कर रहे अतुल कुमार अंजान ने कहा कि उप्र में आंदोलन का व्यापक असर दिख रहा है। उनका दावा है कि उप्र के 36 जिलों में अब तक मजबूत आंदोलन हुआ है। बताया कि पश्चिम के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश में बंद का व्यापक असर है।
सपा और बसपा जैसी पार्टी का समर्थन मिलने पर अतुल अंजान का कहना है कि यह फैसला ठीक है। हालांकि वह लोग काफी समय पहले से समर्थन मांग रहे थे लेकिन ऐसा नहीं किया गया। उन्होंने बताया कि अगर पहले से समर्थन मिला होता तो स्थिति कुछ और होती है। आंदोलन के राजनीति करण के सवाल पर उनका कहना है कि अपना हक मांगना अगर राजनीति है तो ऐसा करने में कोई दिक्कत नहीं है।