कमीशन की खातिर जेलों के लिए खरीदे आधुनिक उपकरण!

-ठेकेदारों से साठ गांठ कर बाबू कर रहे प्रतिमाह लाखों के वारे न्यारे -जैमर, सीसीटीवी, वाकी टाकी, बॉडी स्कैनर का नहीं मिल रहा कोई लाभ

कमीशन की खातिर जेलों के लिए खरीदे आधुनिक उपकरण!
जेल मुख्यालय

लखनऊ। प्रदेश कारागार मुख्यालय के आला अफसरों का मातहत कर्मियों पर कोई नियंत्रण नहीं है। यही वजह है प्रतिवर्ष करोड़ों के खरीदे जा रहे आधुनिक उपकरणों का लाभ जेलों को नहीं मिल पा रहा है। आधुनिक उपकरणों की खरीद सिर्फ कमीशन की खातिर होती है। करोड़ों की लागत से खरीदे गए जैमर, सीसीटीवी, वाकी टाकी समेत अन्य कई उपकरण बेकार पड़े हुए है। जैमर लगे होने के बावजूद जेलों में धड़ल्ले से मोबाइल फोन का इस्तेमाल हो रहा है। वहीं जेल से बंदियों की फरारी समेत अन्य घटनाओं का सीसीटीवी से कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। आलम यह है कमीशन की खातिर जेलों से बगैर पूछे खरीदे गए लाखों के उपकरण गोदामों में धूल खा रहे है। इस खरीद-फरोख्त की निष्पक्ष जांच कराई जाए तो करोड़ों का घोटाला सामने आ जाएगा।

मुख्यालय में बनी "वीडियो वॉल" भी नहीं पकड़ी जाती खामियां

प्रदेश की समस्त जेलों की मॉनिटरिंग के लिए जेल मुख्यालय में वीडियो वॉल का निर्माण कराया गया है। करोड़ों रुपए की लागत से तैयार की यह वीडियो वॉल भी जेलों में चल रही अवैध गतिविधियों को पकड़ने में नाकामयाब ही साबित हो रही है। जेलों की गतिविधियों पर निगरानी रखने के वीडियो वॉल पर एक डिप्टी जेलर और सुरक्षाकर्मी को तैनात भी किया गया है। इस पर तैनात कर्मचारी न तो जेलों में प्रवेश करने वाली अवैध वस्तुओ और न ही अनाधिकृत रूप से जेलों में हो रही गतिविधियों की जानकारी आला अफसरों को दे पाते हैं। यहां तक कि जेल से होने वाली फरारी तक की घटनाओं की जानकारी उन्हें नही हो पाती है। ऐसा तब है जब जेल मुख्यालय में बैठकर प्रदेश की समस्त जेलों की बैरकों को देखने की व्यवस्था की गई है। करोड़ों की लागत सेबनी यह वीडियो वॉल सिर्फ शो पीस बनकर रह गई है।   

सूत्रों के मुताबिक जेलों में पहले उपकरणों एवम अन्य सामान की आपूर्ति नज़ारत अनुभाग से कराई जाती रही। इसके लिए जेलों से डिमांड मांगी जाती है। इसके बाद मांग के अनुसार सामान की आपूर्ति जेलों को की जाती थी। मुख्यालय के अधिकारियों ने आला अफसरों से साठ गांठ करके आधुनिक उपकरण मसलन जैमर, टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन, आटा गूथने की मशीन, कंप्यूटर, सीसीटीवी, वाकी टाकी, आरओ प्लांट खरीद कर लगाने की जिम्मेदारी नजारत से हटवाकर आधुनिकीकरण अनुभाग से करा ली।

उपकरणों के खरीद-फरोख्त की कराई जाएगी जांच: डीजी जेल

जेलों में बगैर डिमांड के दैनिक उपयोग की वस्तुएं और उपकरण भेजे जाने के संबंध में जब महानिदेशक पुलिस/ महानिरीक्षक कारागार एसएन साबत ने बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि फिलहाल ऐसा कोई मामला उनके संज्ञान में नहीं है। उन्होंने यह जरूर कहा कि खरीदे जाने वाले उपकरण व सामान के लिए उन्होंने स्टॉक रजिस्टर के अलावा एक अन्य रजिस्टर भी बनवाया है। यदि ऐसा हो रहा है तो इसकी जांच कराई जाएगी। जांच में दोषी पाए जाने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। उधर आधुनिकीकरण अनुभाग के प्रभारी डीआईजी मुख्यालय अरविंद कुमार सिंह खरीद फरोख्त में कमीशन खोरी और ठेकेदारों से सेटिंग के सवाल पर टिप्पणी करने के बजाए चुप्पी साध ली।

वर्तमान समय में कारागार मुख्यालय का आधुनिकीकरण अनुभाग मोटे कमीशन की खातिर अनाप शनाप दामों पर उपकरणों की खरीद-फरोख्त करके जेलों में आपूर्ति करने में जुटा हुआ है। जेलों से मिली जानकारी के मुताबिक जेल में पहले से गेहूं चालने वाला छन्नना, भगोने, आटा गूथने की मशीन, वाशिंग मशीन सरीखे कई सामान जो पहले से मौजूद थे उन्हे बगैर डिमांड के ही भेज दिया गया है। इनको रखने की जेल में जगह तक नहीं है। यही नहीं कई जेलों लगे जैमर, सीसीटीवी, वाकी टाकी सरीखे कई उपकरण काफी लंबे समय से खराब भी पड़े हुए हैं। करोड़ों रुपए की लागत से बंदियों की सुविधा और जेलों की सुरक्षा के लिए लगाए गए इन उपकरणों का जेलों को कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। जैमर लगे होने के बावजूद जेलों में मोबाइल फोन का इस्तेमाल जगजाहिर है। इसी प्रकार जेलों पर घटनाएं होने के समय अक्सर सीसीटीवी खराब ही मिलते है। हकीकत यह है कि कमीशन की खातिर खरीदे गए इन उपकरणों का लाभ जेल प्रशासन को भले न मिल रहा हो लेकिन इनकी खरीद-फरोख्त से अधिकारी और बाबू मालामाल जरूर हो रहे हैं। आधुनिकीकरण अनुभाग में लंबे समय से दो बाबुओं का काकस बना हुआ है। इन्होंने पूरी व्यवस्था को चौपट कर रखा है। दिलचस्प बात यह है कि कमाकर देने वाले बाबुओं को मुख्यालय अफसर हटा भी नहीं पा रहे है।