जेल मुख्यालय अफसरों की लापरवाही का हुआ खुलासा : कमाऊ जेलों पर तैनात सैकड़ो वार्डर अब तक नहीं हुए रिलीव
करीब तीन माह पूर्व स्थानांतरण सत्र के दौरान कारागार विभाग में बड़ी संख्या में हेड वार्डर व वार्डर के तबादले किये गए। मोटा सुविधा शुल्क लेकर डीओ व दागदार वार्डरों को मनमाफिक जेलों पर तैनात किया गया। हकीकत यह है कि यह आदेश कागजो में सिमट कर रह गया है। अधिकारियों की हीलाहवाली की वजह से विभाग में इस आदेश का अनुपालन होता ही नही है।
लखनऊ। प्रदेश कारागार विभाग में तबादलों का सिलसिला तो बदस्तूर जारी है। सुविधा शुल्क लेकर किये जा रहे इन तबादला आदेशो पर कितना अमल हो रहा इस बात से मुख्यालय में बैठे उच्चाधिकारियों से कोई लेना देना ही नहीं है। यही वजह की स्थानांतरण आदेश होने के बाद भी सैकड़ों हेड वार्डर व वार्डर अभी तक रिलीव नही किये गए है। ऐसा तब हो रहा है जब आदेश में यह बात स्पष्ट रूप से लिखी रहती है कि स्थानांतरित वार्डर को बगैर किसी विलंब के स्थानांतरित जनपद की जेल में कार्यभार ग्रहण के लिए कार्यमुक्त किया जाए। हकीकत यह है कि यह आदेश कागजो में सिमट कर रह गया है। अधिकारियों की हीलाहवाली की वजह से विभाग में इस आदेश का अनुपालन होता ही नही है।
मुख्य बातें
- मोटी रकम लेकर किये गए तबादलो में हुआ बड़ा खेल
- कमाऊ जेलों पर तैनात सैकड़ो वार्डर अब तक नहीं हुए रिलीव
- अफसरों को कमाकर देने वाले वार्डर नही हुए रिलीव
करीब तीन माह पूर्व स्थानांतरण सत्र के दौरान कारागार विभाग में बड़ी संख्या में हेड वार्डर व वार्डर के तबादले किये गए। मोटा सुविधा शुल्क लेकर डीओ व दागदार वार्डरों को मनमाफिक जेलों पर तैनात किया गया। बड़ी संख्या में वार्डर कमाऊ कही जाने वाली गाज़ियाबाद, गौतमबुद्धनगर (नोएडा), मेरठ, अलीगढ़, मुरादाबाद, आगरा, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर समेत अन्य जेलों पर तैनात किया गया। इन कमाऊ जेलों से भी कई वार्डर हेड वार्डर स्थानांतरित किये गए। इन तबादलो में विभागीय अधिकारियों ने वार्डरो मनमाफिक वसूली की। इस वसूली की वजह से कई वार्डर व हेड वार्डर के तबादले एक के बजाए दो-दो जेलों पर कर दिए गए। जिनमे कई को बाद में संसोधित भी किया गया।
सूत्रों का कहना है कि मनमाफिक जेलों पर तैनात किए गए वार्डर तो स्थानांतरित जनपद की जेलो पर चले गए किन्तु कमाऊ जेलों पर तैनात करीब आठ से दस दर्जन वार्डर आज भी स्थानांतरण के बावजूद पुरानी जेलो पर ही जमें हुए है। बताया गया है कि प्रदेश की सबसे कमाऊ कही जाने वाली गाज़ियाबाद जेल के करीब एक दर्जन वार्डर स्थानांतरण के बाद भी उसी जेल पर डेरा जमाए हुए है।
गाज़ियाबाद के अलावा गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) जेल पर करीब डेढ़ दर्जन, सहारनपुर जेल में करीब दो दर्जन, मेरठ व मुजफ्फरनगर में आधा दर्जन से अधिक, अलीगढ़ में भी करीब आधा दर्जन से अधिक, बागपत में दो-तीन वार्डर व हेड वार्डर स्थानांतरण के बाद भी यही जमे हुए है। इन्हें आजतक रिलीव नही किया गया है। ऐसा तब है जब प्रदेश की जेलो को करीब साढ़े तीन हज़ार नए वार्डर दिए गए है। सूत्रों की मानें तो कमाऊ जेलों से रिलीव नही हुए अधिकांश वार्डर-हेड वार्डर कैंटीन, मुलाहिज़ा, मशक्कत, मुलाकात व गल्ला गोदामो में लगे हुए है। यह वार्डर अधिकारियों को कमाकर मोटी रकम देते है। यही वजह है कि उन्हें रिलीव नही किया गया है। उधर इस संबंध में जब जेल मुख्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी से बात की गई तो उन्होंने कहा कि इसकी जांच कराई जाएगी। स्थानांतरित वार्डर रिलीव कराए जाएंगे।
वार्डरों का हक़ मार दे रहे अधीक्षक लखनऊ। एक तरफ वार्डर कमाकर अधिकारियों की जेब भर रहे है, वही दूसरी ओर एक जेल ऐसी है जहां अधिकारी वार्डर-हेड वार्डर का हक तक मार दे रहे है। यह हाल राजधानी की जिला जेल में देखा जा सकता है। इस जेल के अधीक्षक आशीष तिवारी हेड वार्डर व वार्डरों की छोटी मोटी कमाई भी हजम कर जाते है। बताया गया है कि बैरेक में ड्यूटी करने वाले वार्डर बन्दियों को छोटी मोटी सुविधाएं देकर जो सौ-दो रुपये कभी कदार कमा लेते थे। अधीक्षक ने यह काम बन्दी रायटर को सौप कर उनके इस हक़ को भी छीन लिया। इससे वार्डरो में खासा आक्रोश व्याप्त है। |
राकेश यादव
स्वतंत्र पत्रकार
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