साधारण परिवार का एक असाधारण व्यक्तित्व डा• आंबेडकर: इ•भीमराज
शिक्षा और अध्ययन के प्रति काफी गंभीर थे अंबेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर बौद्ध कल्याण संस्था ने किया आयोजन
लखनऊ। भारत रत्न बोधिसत्व बाबा साहब डा• भीमराव अंबेडकर साहब का 133वां जन्मोत्सव समारोह की पूर्व संध्या पर धर्मोदय बुद्ध विहार नया पुरवा पूर्णिया सीतापुर रोड लखनऊ में बौद्ध कल्याण संस्थान उत्तर प्रदेश लखनऊ (पंजीकृत) के तत्वाधान में बड़े धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के इं•भीमराज, अधिशासी अभियंता (से•नि•) उत्तर प्रदेश जल निगम रहे। कार्यक्रम में बाबा साहब के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर मौजूद विद्वानो ने अपने- अपने विचार रखें।
इं• भीमराज साहब ने कहा कि बाबा साहेब डा• अंबेडकर का मानना था कि खोये हुए अधिकार भीख मांगने से नहीं मिल सकते। समता, स्वतंत्रता बंधुत्व एवं न्याय पर आधारित नए समाज की निर्माण में वे लीन रहे। बाबा साहब ने अपने सैनिकों को बताया कि पाखंडवादी विषमता से मुक्ति के बिना ब्रिटिश राज्य से मुक्ति का कोई महत्व नहीं है। हम दोहरे गुलाम हैं। केवल राजनीतिक शक्ति से ही दलितो- शोषितों का कल्याण नहीं था। वे महान राष्ट्रवादी थे, भारत देश को उन्होंने राष्ट्र बनाया। गोलमेज सम्मेलन में शामिल हो के लिए जाते समय डा• अंबेडकर ने कहा था कि स्वराज की मांगों का समर्थन तो मैं करूंगा ही, परंतु मांगूंगा वही, जो हमारे लोगों के लिए न्याय संगत और हितकर हो। वे मानवों में एकता पर आधारित सही राष्ट्रीय भावना के पक्षधर थे। अंग्रेजो ने ड• आंबेडकर पूछा कि यदि आपकी सारी मांगे मान ली जाए तो आप क्या चाहेंगे कि भारत में ब्रिटिश हुकूमत चलती रहे? बाबा साहब का उत्तर कठोर और नकारात्मक रहा। बाबा साहब ने मानव समाज के हित के लिए कहा कि शिक्षा सस्ती से सस्ती और इतनी सस्ती होनी चाहिए कि समाज के निर्धन से निर्धन व्यक्ति तक पहुंचनी चाहिए। तभी मानव का कल्याण संभव है।
उन्होंने बताया कि बाबा साहब लगातार अध्ययन करते रहते थे। उसका एक दृष्टांत है बाबा साहब 25 अप्रैल 1948 को रेलवे सैलून से लखनऊ आए, उस समय वह भारत के कानून मंत्री थे। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल पद पर भारत कोकिला सरोजिनी नायडू आसीन थी, वह स्वयं बाबा साहब को राजभवन के अतिथि गृह में ठहरने का निमंत्रण देने लखनऊ रेलवे स्टेशन पर गयी थी। जब भारत कोकिला ने अनुरोध किया तो बाबा साहब ने कहा "बहिन" मैं यात्रा के समय सैलून में ही रुकूंगा। इसी में पढ़ता- लिखता हूं। सैलून में मैं अकेला नहीं मेरी पुस्तके मेरे साथ हैं। इन्हें लेकर आपके अतिथि गृह कैसे चल सकता हूं? डा• अंबेडकर अध्ययन के प्रति कितना गंभीर रहते थे और अपना समय कभी भी बर्बाद नहीं करते थे।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से राम प्रसाद गौतम, निगम कुमार बौद्ध, सीताराम, पूनम प्रभाकर, सुमन साहिल, अभिलाषा वर्मा एवं अन्य गणमान्य उपस्थिति रहे।