साक्षारता ही सामाजिक प्रगति का प्रकाश-पुंज है

शिक्षा एक बहुआयामी साधन है, जो मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारती है। व्यक्तित्व निर्माण के कारण ही मनुष्य, समाज का निर्माण और दिशा प्रदान करने का कार्य करता है। समाज निर्माण और राष्ट्र निर्माण के लिए शिक्षा बहुत ही आवश्यक है।.

साक्षारता ही सामाजिक प्रगति का प्रकाश-पुंज है
साक्षरता सिर्फ हमारे खुद के विकास तक सीमित नहीं है इसका गहरा सम्बन्ध सामाजिक और आर्थिक विकास से भी है

साक्षरता आज की सबसे बड़ी जरूरतों में से एक है इसका सामजिक और आर्थिक विकास से गहरा सम्बन्ध हैl विश्व की आधे से ज्यादा समस्याओं की जड़ अशिक्षा है l साक्षरता सिर्फ हमारे खुद के विकास तक सीमित नहीं है इसका गहरा सम्बन्ध सामाजिक और आर्थिक विकास से भी है। व्यक्ति और समाज में साक्षरता का विशेष महत्व है ये इसी बात से समझा सकता है कि जिस प्रकार इंसान को जीने के लिए प्राण वायु की आवश्यकता होती है ठीक उसी प्रकार जीवन यापन के लिए शिक्षित होना बेहद जरूरी है।

जीवन यापन के साथ- साथ स्वयं के बौद्धिक विकास के लिए भी पूर्ण रूप से शिक्षित होना जरूरी है। महिलाओं में इसका प्रतिशत केवल 65.46 है। महिलाओं में कम साक्षरता का कारण अधिक आबादी और परिवार नियोजन की जानकारी कमी है, जो भारत के लिए बड़ी समस्या भी है और इसे ठीक करना एक चुनौती भी है। बदलते हुए परिवेश में यह सोच बदलने की जरुरत है ताकि महिलाऐं भी शिक्षित बनें और समाज और देश का विकास हो ।

भारत में महिलाओं की शिक्षा का विचार करते समय केवल भौतिक बाधाओं का विचार करने से काम नहीं चलेगा। भारत की विशिष्ट ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को ध्यान रखते हुये सामाजिक एवं सांस्कृतिक चुनौती पर भी विचार करना आवश्यक है। संस्कृति और समृद्धी को साथ-साथ लक्ष्य करते हुये भारत को विश्व गुरु बनाने की दिशा में चल रहें प्रयासों में महिलाओं को भी साथ लिये बिना लक्ष्य प्राप्ति संभव नहीं अतः महिला शिक्षा को समृद्ध परंपरा के रूप में प्रतिष्ठित करना होगा। साक्षरता ही वह कारण है, जो समाज में गतिशीलता पैदा करती है l

यह गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य मानसिक विकास, अन्तर्राष्ट्रीय मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों के निर्माण एवं जनतांत्रिक प्रक्रियाओं के स्वतंत्र संचालन के लिए आवश्यक तत्व है। साक्षरता की कमी के कारण मनुष्य में रूढ़िवादिता एवं मानसिक एकाकीपन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। साक्षरता दर जहाँ उच्च, है वे देश अथवा प्रदेश आर्थिक रूप से सम्पन्न हैं। साक्षरता का प्रभाव जनांकिकीय तथ्यों जैसे-जन्मदर, मृत्युदर, प्रव्रजन, व्यवसायिक संरचना, नगरीकरण एवं औद्योगिक विकास पर पड़ता है। इसलिए साक्षरता प्रतिरूप के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक विकास का सूचक होने के कारण इसका विश्लेषण अति आवश्यक है.

विदित हो कि विश्व में साक्षरता दिवस 8 सितम्बर को प्रत्येक वर्ष पूरे विश्व में मनाया जाता है| हमारे समाज में जागरूकता फैलाने के लिए ये दिवस बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है l इस दिवस को मनाने का उद्देश्य समाज में लोगो के प्रति शिक्षा को प्राथमिकता देने को बढ़ावा देना है| इस समाज में 'इज्जत और सम्मान' से रहने के लिए शिक्षा बेहद जरुरी है l साक्षरता का फैलाव और प्रसार आम तौर पर आधुनिक सभ्यता जैसे कि आधुनिकीकरण, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, संचार और वाणिज्य के महत्वपूर्ण लक्षण से जुड़ा हुआ है। शिक्षा का अभिप्राय सिर्फ पढ़ा-लिखा व्यक्ति होने से ही नहीं है, बल्कि शिक्षा का मतलब समाज में अपना मान-सम्मान बनाए रखने के साथ-साथ समाज और अपने लिए विकास कार्य में लगे रहना भी है l

साफ़ है कि एक अच्छा जीवन जीने के लिए एक अच्छे समाज का होना जरुरी है और अच्छे समाज के लिए लोगों का शिक्षित होना अत्यंत आवश्यक है l शिक्षा की कमी राष्ट्रीय विकास में बाधा ही उत्पन्न नहीं करती, बल्कि इससे सामाजिक-आर्थिक प्रगति में भी अवरोध उत्पन्न होता है और साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा निर्बल होती है। यह समाज के तकनीकी विकास की गति को कम करती है और ऐसी प्रवृर्तियों को विकसित करती है, जिससे आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक विषमता एवं असहयोग उत्पन्न होते हैं.

देखा जाये तो हर पाँच में से एक पुरुष और दो-तिहाई महिलाएँ अनपढ़ है। उनमें से कुछ के पास कम साक्षरता कौशल है, कुछ बच्चों की पहुँच आज भी स्कूलों से बाहर है और कुछ बच्चे स्कूलों में अनियमित रहते हैं। जब तक देश की अधिकांश आबादी साक्षर नही हो जाती हैं तब तक गरीबी, अंधविश्वास, लिंग भेद, जनसंख्या बढ़ोतरी जैसी सामजिक समस्याओं से पार पाना असम्भव हैं l

सरकार द्वारा इस दिशा में कई सार्थक कदम उठाने के बावजूद सार्थक परिणाम नजर नही आ रहे हैं l सर्व शिक्षा अभियान, मिड डे मील प्रौढ़ शिक्षा जैसे साक्षरता कार्यक्रम कई वर्षो से भारत में चल रहे हैं l किन्तु इनमें से कोई भी योजना सबको शिक्षित करने में सफल साबित नहीं हो सकी l इसके भी कई कारण हैं, जिसमें सरकार और प्रशासन की उदासीनता, सरकारी स्कूलों की बदतर हालत, शिक्षकों की कम काबिलियत प्रमुख है l अभी भी कुछ समाज और व्यक्ति है, जो अपने रोजी-रोटी के लिए शिक्षा पर ज्यादा महत्व नहीं देते।

अपने बच्चों को स्कूल के जगह छोटे-मोटे काम में लगा देते हैं, जिससे वह अशिक्षित रह जाते हैं। हमने कई बार देखा होगा कि दुकान, होटल, ढाबा या कई गैरेजों में छोटे-छोटे बच्चे काम करते नजर आते हैं, क्या उन्हें शिक्षा की जरूरत नहीं ? क्यूँ उनके माता-पिता स्कूल भेजने बजाय उन्हें मजदूरी करने के लिए भेज देते हैं। जबकि यह बाल श्रम अपराध के अंतर्गत आता है। बहुमुखी विकास रूपी वृक्ष की जड-शिक्षा की अनदेखी करना और शिक्षा-प्रणाली की उचित नीतियों का निर्धारण न करना हमारे नेताओं की सबसे बड़ी भूल है, जिसका परिणाम हम आज भुगत रहे हैं.

यह हमारे समाज की सबसे बड़ी विडम्बना है कि हम ऐसे समाज और देश में रहते हैं, जहां सब कुछ देखकर भी कुछ नहीं कहते और करते हैं। अगर व्यक्ति गलत देखकर उसे तत्काल रोकने का प्रयास करें, तो निश्चित ही हमारे देश को विकास और उन्नति करने से कोई नहीं रोक पाएगा। इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि जिस देश और सभ्यता ने ज्ञान को अपनाया है उसका विकास अभूतपूर्व गति से हुआ है।

शिक्षा के महत्व का वर्णन करना शब्दों में बेहद मुश्किल हैl ये सत्य है कि पूर्ण साक्षरता प्राप्त करने से कई सामाजिक बुराई, अत्याचार और भ्रष्टाचार को भी समाप्त किया जा सकता है l एक शिक्षित व्यक्ति अच्छी तरह से बदलते विश्व परिदृश्य के साथ अपने आपको समायोजित करता है और अपने व्यक्तिगत और व्यवसायिक जीवन के विकास के लिए और अपने समाज के विकास की आवश्यकताओं के लिए इन्हें आत्मसात करता है ईमानदारी से अगर कहें तो लगभग सभी देश बदलते परिदृश्य के अनुरूप अपनी औपचारिक प्रक्रियाओं के अद्यतन में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं और यहीं अशिक्षित व्यक्ति अपने घर को भी सुसंस्कृत एवं परिमार्जित वातावरण देने में अक्षम होता है।

इस प्रकार निरक्षरता एवं अशिक्षा के कारण देश विवेकशील नागरिकों से वंचित रह जाता है l सफलता और जीने के लिये खाने की तरह ही साक्षरता भी महत्वपूर्ण है। गरीबी को मिटाना, बाल मृत्यु दर को कम करना, जनसंख्या वृद्घि को नियंत्रित करना, लैंगिक समानता को प्राप्त करना आदि को जड़ से उखाडऩा बहुत जरूरी है। साक्षरता में वो क्षमता है जो परिवार और देश की प्रतिष्ठा को बढ़ा सकता है.

गौरतलब हो कि शिक्षा एक सभ्य, सक्षम व सुदृढ़ समाज की आधारशिला होती है। इसलिए सामजिक द्रष्टि से भी शिक्षा अत्यंत आवश्यक हैं किसी भी देश के विकास के स्तर को उस देश की शिक्षा यानी साक्षरता के प्रतिशत से ही आंका जाता है। एक गणतंत्र राष्ट्र के शिक्षित नागरिक ही अपने कर्तव्यो और अधिकारों के लिए जागरूक होकर इनका सही उपयोग कर सकते  हैं l देखा जाये तो प्रत्येक शिक्षित भारतवासी का यह धर्म है कि किसी भी तरह अपने उन अज्ञानी-अशिक्षित देशवासियों को शिक्षा की महत्ता समझाने का प्रयास करें। यदि बूंद-बूंद से घड़ा भर सकता है, तो शिक्षित नागरिक अशिक्षितों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए या साक्षर बनाने के लिए प्रेरित क्यों नहीं कर सकते ?

एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति ही समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारियों को समझते हुए सदुपयोग कर सकता हैं इसलिए अपना बहूमुल्य समय निकाल कर अपने बच्चों के स्कूल या किसी अन्य शिक्षण संस्थानों में जहां पर शिक्षकों की कमी है, वहां जाकर बच्चों को शिक्षा दे सकते हैं एवं अपने शिक्षा का अनुभव साझा कर सकते हैं, जिससे समाज और व्यक्ति की शिक्षा में गुणवत्ता आएगी और शिक्षकों की कमी भी दूर होगी। आप चाहें तो देश हित में अपना समय निकाल कर अपने आसपड़ोस या फिर किसी भी क्षेत्र के ऐसे बच्चे, युवा, बुजुर्ग जो अशिक्षित हो, उन्हें साक्षर करने का काम कर सकते हैं।

शिक्षा का कभी अंत नहीं होता। शिक्षित होकर हम राष्ट्र निर्माण में महती भूमिका अदा कर सकते हैं। ग्रामीण शिक्षा के लिये मुखिया, पंचायत प्रतिनिधि और स्वयं सेवी संस्थायें अगर ईमानदारी से कार्य करें तो गाँवों इलाकों की स्थिति पूर्ण रूप से बदल सकती है l साक्षरता लाना एक पुण्य का काम है और इस कार्य में सभी  को निस्वार्थ भाव से पूरे समर्पण से काम करने की आवश्यकता है। सिर्फ साक्षरता कर्मी ही नहीं इसमें समाज के हर वर्ग, हर तबके के लोगों के सहयोग की आवश्यकता है। जब तक सभी लोग मिलकर काम नहीं करेंगे तब तक हमारा देश पूर्ण साक्षर नहीं होगा।

राम कुमार दोहरे 
   ONGC