सिद्धार्थनगर में 13 नवंबर से शुरू होगा भारतभारी मेला : कार्तिक पूर्णिमा से पहले होती है शुरूआत, पवित्र स्नान कर लोग करते हैं पूजा-अर्चना
जिस धार्मिक स्थल पर यह मेला लगता है। वह तीन काल खंडो का इतिहास समेटे हुए है। यहां प्रदेश के कोने-कोने से श्रद्धालु आकर यहां बने कुंड में स्नान करते हैं। फिर यहां बने मंदिरों में पूजा-पाठ करते हैं।
सिद्धार्थनगर में हर साल की तरह इस भी कार्तिक पूर्णिमा से पहले भारतभारी मेला 13 नवंबर से शुरू होने वाला है। जिस धार्मिक स्थल पर यह मेला लगता है। वह तीन काल खंडो का इतिहास समेटे हुए है। यहां प्रदेश के कोने-कोने से श्रद्धालु आकर यहां बने कुंड में स्नान करते हैं। फिर यहां बने मंदिरों में पूजा-पाठ करते हैं।
तत्कालीन एसडीएम ने संरक्षण के लिए करवाए काम : यूनाइटेड प्राविंसेज आफ अवध एंड आगरा के वाल्यूम 32 साल 1907 के पेज नंबर 96-97 में इस जगह के बारे में दे रखा है। जानकारी के मुताबिक 1875 में भारतभारी के कार्तिक पूर्णिमा मेले में पचास हजार लोगों ने भाग लिया था। आर्कोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया 1996-97 के अनुसार यहां कालीन सभ्यता का प्रमाण भी मिला है। पिछले महीने यहां तत्कालीन एसडीएम त्रिभुवन ने भी इसके संरक्षण के लिए काम किया था।
कुएं में मिलते हैं नर कंकाल : बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास के प्रोफेसर सतीश चंद्र व एसएन सिंह सहित गोरखपुर विश्वविद्यालय के कृष्णानंद त्रिपाठी ने भारतभारी का स्थलीय निरीक्षण किया था। यहां उन्होंने मूर्तियों, धातुओं, पुरा अवशेषों के निरीक्षण के बाद टीले के नीचे एक समृद्ध सभ्यता होने की बात कही। प्राचीन टीले व कुएं के नीचे दीवारों के बीच में कही-कही लगभग आठ फिट लंबे नर कंकाल मिलते है। जो इतने पुराने है कि छूते ही राख जैसे बिखर जाते हैं। कृष्णानंद त्रिपाठी द्वारा ले जाये गये अवशेषों को गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के संग्रहालय में देखा जा सकता है।