कारागार विभाग के अफसरों का कारनामा : तबादलो में कई जेल अफसर लखपति तो कई बने करोड़पति, वार्डर-हेड वार्डर के बेतरतीब तबादलो से सैकड़ों नहीं हो पा रहे रिलीव
हकीकत यह है कि वार्डर-हेड वार्डर के तबादलो में विभाग के कई अधिकारी लखपति तो कई करोड़पति बन गए। तबादलो की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। उधर जेल मुख्यालय के अधिकारी इस गंभीर मसले पर चुप्पी साधे हुए है।
लखनऊ। जेल विभाग के तबादलो में अधिकारियों का एक अजब गजब कारनामा सामने आया है। सेंट्रल जेल में वार्डर की कमाई नही होती है। अधिकारियों ने सेंट्रल जेल के वार्डर से मोटी रकम लेकर उन्हें कमाऊ जिला जेलों पर तैनात कर दिया। सेंट्रल जेलों से बड़ी संख्या में वार्डर हटा तो दिए गए किन्तु वार्डर दिए नही गए। इससे जेलों के संचालन में दिक्कते होने के साथ ट्रांसफर वार्डर रिलीव नहीं हो पा रहे है। हकीकत यह है कि वार्डर-हेड वार्डर के तबादलो में विभाग के कई अधिकारी लखपति तो कई करोड़पति बन गए। तबादलो की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। उधर जेल मुख्यालय के अधिकारी इस गंभीर मसले पर चुप्पी साधे हुए है।
हटाये गए 40 वार्डर, दिए गए सिर्फ आठ-दस लखनऊ। प्रदेश में पांच सेंट्रल जेल है। इन जेलो में नैनी जेल को छोड़कर सभी जेलो में सिर्फ सजायाफ्ता कैदियों को ही रखा जाता है। दो से तीन हज़ार कैदियों वाली इन जेलो पर 70 से 80 वार्डर तैनात होते है। तबादला कमेटी अधिकारियों इन जेलो से हटा तो दिए 35-40 वार्डर दिए सिर्फ आठ-दस ही गए। सेंट्रल जेल बरेली से 80 वार्डर में 45 का तबादला कर दिया गया, दिए गए सिर्फ आठ-दस वार्डर ही। इसी प्रकार आगरा में 75 में 40 का ट्रान्सफर कर दिया, दिए गए सिर्फ दस, फतेहगढ़ से 70 में 35 हटाये गए दिए गए सिर्फ सात-आठ ही। इस अव्यवस्था की वजह से स्थानांतरित वार्डर रिलीव नही हो पा रहे है। |
मिली जानकारी के मुताबिक सेंट्रल जेल की अपेक्षा जिला जेल में वार्डर-हेड वार्डर की अधिक कमाई होती है। इस वज़ह से वार्डर सेंट्रल जेल जाना नहीं चाहते है। सूत्रों का कहना है कमाई नही होने की वजह से कोई भी वार्डर सेंट्रल जेल पर जाना नही चाहता है। सेंट्रल जेल पर तैनात वार्डर कमाई के लिए खासतौर पर कमाऊ जिला जेल जाने को हमेशा तैयार रहता है। कमाई के चक्कर मे कमेटी के सदस्यों ने मोटी रकम लेकर सेंट्रल जेल पर तैनात वार्डरों को बड़ी संख्या में कमाऊ गाज़ियाबाद, नोएडा, अलीगढ़, मेरठ, मुरादाबाद, मुज्जफरनगर जेल पर तैनात कर दिया। आलम यह है कि सेंट्रल जेल में वार्डर कम होने की वजह से स्थानांतरित वार्डरों को रिलीव तक नही हो पा रहे है। ऐसा तब किया जा रहा है जब स्थानांतरण आदेश में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि इन्हें बगैर प्रस्थानी की प्रतीक्षा किये कार्यमुक्त किया जाए। जिससे वह स्थानांतरित जनपद की जेल पर तत्काल कार्यभार ग्रहण कर सके। यह आदेश कागजो में सिमट कर रह गया है। हकीकत यह है कि मोटी रकम लेकर कमाऊ जेलो पर भेजे गए सैकड़ो वार्डर रिलीव नही हो पाए। वार्डर कम होने की वजह से सेंट्रल जेल के अधिकारी इन्हें रिलीव नही कर रहे है। अधिकारियों कहते है कि इन्हें रिलीव कर दिया गया तो जेल संचालन में तमाम दिक्कत होगी।
गौरतलब है कि कोरोना कॉल की वजह से प्रदेश में दो साल से तबादलो पर रोक लगी हुई थी। लंबे अंतराल के बाद प्रदेश में आई स्थानांतरण नीति से जेल विभाग में मानो भूचाल आ गया। विभाग के मुखिया डीजी पुलिस/आईजी जेल ने हेड वार्डर-वार्डर के तबादलों के लिए जेल मुख्यालय डीआईजी शैलेन्द्र मैत्रय की अध्यक्षता में वरिष्ठ अधीक्षक अम्बरीष गौड़ व आरके मिश्रा की तीन सदस्यीय कमेटी गठित की। कमेटी के सदस्यो ने करीब एक हज़ार से अधिक वार्डर-हेड वार्डर के तबादले कर दिए। इन तबादलो में जमकर वसूली की गई। वसूली के चक्कर मे हुए बेतरतीब तबादलो से विभाग में खलबली मची हुई है। उधर डीआईजी जेल मुख्यालय शैलेन्द्र मैत्रय ने माना कि सेंटल जेल से वार्डर हटा ज्यादा दिए गए है। रिलीव नही किये जाने के सवाल पर उनका कहना है कि नए वार्डरों के आने पर उन्हें रिलीव कर दिया जाएगा। आदेश में तत्काल कार्यभारग्रहण करने के सवाल पर उन्होंने चुप्पी साध ली।
राकेश यादव
स्वतंत्र पत्रकार
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