मंदिर निर्माण के लिए आया 115 देशों का जल और 77 देशों से आना बाकी, राजनाथ सिंह बोले- इससे करेंगे अपने रामलला का अभिषेक
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, 'दुनिया के सभी देशों से जल लाने से भारत की वसुधैव कुटुंबकम की सोच झलकती है. 115 देशों से जल लाना एक उत्कृष्ट कार्य है l मुझे आशा है कि मंदिर निर्माण पूरा होने से पहले बाकी 77 देशों से भी जल लाया जाएगा l हम इस जल से अपने राम लला का जलाभिषेक करेंगे.'
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार को कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए सात महाद्वीपों के 115 देशों से जल लाने का विचार अनूठा है और यह वसुधैव कुटुंबकम के संदेश को झलकाता है. सिंह ने अकबर रोड स्थित अपने आवास पर श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय तथा डेनमार्क, फिजी तथा नाइजीरिया समेत अनेक देशों के राजदूतों और उच्चायुक्तों की मौजूदगी में 115 देशों की नदियों, झरनों और समुद्रों का जल प्राप्त किया.
भाजपा नेता और दिल्ली के पूर्व भाजपा विधायक विजय जॉली की अगुवाई में एनजीओ दिल्ली स्टडी सर्किल ने जल एकत्रित किया l जॉली के प्रयासों की सराहना करते हुए सिंह ने कहा, ‘दुनिया के सभी देशों से जल लाने से भारत की वसुधैव कुटुंबकम की सोच झलकती है. 115 देशों से जल लाना एक उत्कृष्ट कार्य है l मुझे आशा है कि मंदिर निर्माण पूरा होने से पहले बाकी 77 देशों से भी जल लाया जाएगा l हम इस जल से अपने राम लला का जलाभिषेक करेंगे.’
उन्होंने कहा कि राम मंदिर का निर्माण सभी के लिए गौरव का क्षण है. उन्होंने कहा, ‘भारतीय संस्कृति बहुत समृद्ध है और भारत में जाति, वर्ण और धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता.’ इस अवसर पर राय ने कहा कि दुनिया के अनेक देशों से जल लाना एक ऐतिहासिक क्षण है.
उन्होंने कहा, ‘अयोध्या में एक सप्तसागर है. माना जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम के राज्यतिलक के दौरान दुनिया के सभी सागरों का जल लाया गया था और आज जब उनके जन्मस्थान पर उनका मंदिर बनाया जा रहा है तो दुनिया के सभी समुद्रों का जल एक बार फिर लाया गया है l यह हमारे लिए भावनात्मक विषय है.’
उन्होंने यह भी कहा कि राम मंदिर की नींव का पहला चरण पूरा हो गया है l जॉली ने कहा कि कोविड महामारी के दौरान जब लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकल सके तो उनके संगठन ने दुनिया के 115 देशों से पानी एकत्रित किया l उन्होंने कहा, ‘केवल हिंदुओं ने ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के मुस्लिम, सिख, ईसाई, यहूदी और बौद्ध धर्म के लोगों ने इस पवित्र काम में योगदान दिया है.’