गंगा की सफाई के लिए गंगा किनारे के 12 जिलों में छोड़े जाएंगे 15 लाख मछली के बच्चे
नमामि गंग प्रोजेक्ट के तहत यूपी में बह रही गंगा में रोहू मछली के बच्चे (फिंगरलिंग) छोड़े जाएंगे। इससे गंगा प्रदूषण मुक्त होंगी। गंगा में नाइट्रोजन की मात्रा कम होगी और मछलियों की तादाद में भारी बढ़ोत्तरी होगी। मछली के बच्चे का साइज 70 से 100 मिलीमीटर के बीच होता है। गंगा में एक ही प्रजाति की रोहू, कतला और नैन मछलियों को छोड़ा जाएगा। ये गंगा में ऊपरी सतह, बीच और निचली सतह में मौजूद हानिकारक अशुद्धियों को खाती हैं।
मछलियां मां गंगा को निर्मल और स्वच्छ बनाने में सहायक बनेंगी। नमामि गंग प्रोजेक्ट के तहत यूपी में बह रही गंगा में रोहू मछली के बच्चे (फिंगरलिंग) छोड़े जाएंगे। इससे गंगा प्रदूषण मुक्त होंगी। गंगा में नाइट्रोजन की मात्रा कम होगी और मछलियों की तादाद में भारी बढ़ोत्तरी होगी। मछली के बच्चे का साइज 70 से 100 मिलीमीटर के बीच होता है। गंगा में एक ही प्रजाति की रोहू, कतला और नैन मछलियों को छोड़ा जाएगा। ये गंगा में ऊपरी सतह, बीच और निचली सतह में मौजूद हानिकारक अशुद्धियों को खाती हैं। ये तीनों मछलियां पूरी तरह शाकाहारी हैं। इससे गंगा में बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) में कमी आती है। इनको साइंटिफिक तरीके से रिसर्च कर ही गंगा में छोड़े जाने का फैसला लिया गया है।
मछली इस प्रकार दूर करेंगी अशुद्धियां |
- रोहू- ये पानी के ऊपरी सतह (सरफेस फीडर) में मौजूद अशुद्धियों को खाती है।
- कतला- ये पानी के बीच लेयर (कॉलम फीडर) में मौजूद गंदगी को खाकर खत्म करती है।
- नैन- ये पानी के सबसे निचली सतह (बॉटम फीडर) में रहकर गंदगी का खत्म करती है।
नाइट्रोजन बढ़ने से प्रजनन होता है प्रभावित : सीएसजेएम यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ बायोसाइंस एंड बायोटेक्नोलॉजी के हेड डा. शाश्वत कटियार ने बताया कि गंगा में नाइट्रोजन की मात्रा 20 से 30 मिलीग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए। लेकिन कई बार घरेलू सीवर, खाद्य पदार्थ और शैवाल आदि भारी तादाद में बढ़ जाने से इसकी मात्रा बढ़ जाती है। पानी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ने से मछलियों के प्रजनन पर भी प्रभाव पड़ता है। मौजूदा समय में गंगा में मछलियों की तादाद काफी कम है।
गंगा का सबसे बड़ा हिस्सा यूपी में : गंगोत्री से शुरू होकर बंगाल की खाड़ी तक गंगा की कुल लंबाई करीब 2525 किमी है। इसमें बिजनौर से प्रवेश करते हुए गंगा यूपी के अंदर 1450 किमी. के हिस्से में बहती है। देश में सबसे ज्यादा यूपी में गंगा का प्रवाह है। ऐसे में यहां मछली छोड़े जाने के लिए 12 जिलों को चुना गया है। इसमें प्रमुख रूप से कानपुर, बदायूं, बुलंदशहर, मेरठ, प्रयागराज, मुरादाबाद, वाराणसी शहर को भी शामिल किया गया है। सभी जिलों में सवा-सवा लाख मछली के बच्चे छोड़े जाएंगे।
लखनऊ से भेजी जाएंगी मछिलयां : मत्स्य विभाग के सहायक निदेशक एनके अग्रवाल ने बताया कि ये मछलियां गंगा के पानी में आराम से सर्वाइव कर जाती हैं। इनका सर्वाइल रेट 90 परसेंट तक है। इन पर लखनऊ स्थित नेशनल ब्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिसोर्स (NBFGR) के साइंसिस्ट ने रिसर्च कर ब्रीड कराया है। वहीं से सभी मछलियों के बच्चों को लाकर गंगा में छोड़ा जाएगा। यहीं से पूरे प्रदेश में भेजी जाएंगी।
इस तरह होगी मॉनिटिरिंग : गंगा में छोड़ी गई इन मछलियों की मॉनिटिरिंग पानी की पीएच वैल्यू नापकर की जाएगी। पीएच वैल्यू कम होगी तो इसका मतलब ये होगा कि मछलियां अपना काम कर रही हैं। डेढ़ साल में मछलियां वयस्क होकर नैचुरल तरीके से ब्रीड करेंगी। इससे गंगा में मछलियों की तादाद फिर से बढ़ना शुरू होगी। वहीं शुक्रवार को कानपुर में गंगा नदी में मछली के बच्चों को मत्स्य विभाग द्वारा छोड़ा गया। इसमें तमाम लोगों ने हिस्सा लिया।
मछली छोड़ने के 2 प्रमुख कारण
- -गंगा में मत्स्य संपदा में तेजी से बढ़ोत्तरी होगी।
- -गंगा को निर्मल बनाने में ये मछलियां बेहद कारगर हैं।