समलैंगिकता-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
समलैंगिक विवाह और मौलिक अधिकारों को लेकर रागिनी ठाकुर कहती हैं, कि “दरअसल, मौलिक अधिकार भी उसी चीज़ के लिए बनता है जिसके लिए देश में क़ानून हो. जिसके लिए क़ानून ही नहीं है उसके लिए मौलिक अधिकार कैसे बन जाएगा.”
राज्य किसी नागरिक के खिलाफ धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेद नहीं कर सकता है। भारतीय क़ानून सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से क़ानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बिना वंचित नहीं किया जा सकता लेकिन, सरकार इसे मौलिक अधिकार का मसला नहीं मानती।
सरकार का पक्ष है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार क़ानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अधीन है और समलैंगिक विवाह के मौलिक अधिकार को शामिल करने के लिए इसका विस्तार नहीं किया जा सकता है। समलैंगिक विवाह "किसी भी व्यक्तिगत क़ानून या किसी भी सांविधिक वैधानिक क़ानून में मान्यता प्राप्त या स्वीकृत नहीं हैं।
समलैंगिक विवाह और मौलिक अधिकारों को लेकर रागिनी ठाकुर कहती हैं, कि “दरअसल, मौलिक अधिकार भी उसी चीज़ के लिए बनता है जिसके लिए देश में क़ानून हो. जिसके लिए क़ानून ही नहीं है उसके लिए मौलिक अधिकार कैसे बन जाएगा.”
“मौलिक अधिकार के तहत अगर वो अपनी पसंद का पार्टनर चुनती भी हैं तो भी वो शादी कैसे करेंगी क्योंकि उनकी शादी के लिए कोई क़ानून ही नहीं है।शादी की आज़ादी है लेकिन अगर आप क़ानूनी शादी करना चाहते हैं तो क़ानून के अनुसार ही करनी पड़ेगी। ऐसे में मौलिक अधिकार का उल्लंघन कैसे होगा हालाँकि, विवाह संबंधी क़ानूनों में बदलाव करके ज़रूर इस अधिकार को पाया जा सकता है।”
यही याचिकाकर्ताओं की मांग भी है, कि समलैंगिकों की समानता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए विवाह क़ानूनों में बदलाव किया जाए।
दुनिया भर में 29 देश ऐसे हैं जहाँ ऐसे ही क़ानूनी उलझनों के बावजूद समलैंगिक विवाह को मंज़ूरी दी गई है। कुछ देशों में कोर्ट के ज़रिए ये अधिकार मिला तो कुछ में क़ानून में बदलाव करके तो कुछ ने जनमत संग्रह करके ये अधिकार दिया गया।
शादी से जुड़े अन्य क़ानूनों को लेकर अब भी चर्चा जारी है जैसे समलैंगिकों के लिए घरेलू हिंसा के क़ानून के तहत मामला दर्ज कराने में समस्या आती है लेकिन, उनकी शादी को मान्यता मिली हुई है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2018 में समलैंगिक सेक्स पर औपनिवेशिक युग के प्रतिबंध को खत्म करने के बावजूद भारत में समलैंगिक विवाह अवैध माना हैं। भारत में एलजीबीटी+ समुदाय के लोगों को उम्मीद थी कि फैसले के साथ शादी और गोद लेने सहित अधिक समान अधिकारों का रास्ता साफ होगा। सुमन ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपने पुरुष मित्र से शादी करने की इजाजत मांगी है।
सिंतबर 2020 से अब तक ऐसी कई याचिकाएं कोर्ट में दाखिल की जा चुकी हैं। कनाडा के वैंकुवर से थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से सुमन कहते हैं, "शादी करने का एक मौलिक अधिकार है और हमें किसी अन्य विपरीत लिंग जोड़े की तरह ही शादी करने का अधिकार दिया जाना चाहिए। वे कहते हैं, "पारस और मैं शादी करना चाहते हैं. हम एक परिवार चाहते हैं. हम काम के लिए बाहर जाना चाहते हैं और घर वापस आकर परिवार की तरह बच्चों के साथ टीवी देखकर खाना खाना चाहते हैं।"
यदि ये अपना केस जीत जाते हैं, तो भारत ताइवान के बाद समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाला एशिया में दूसरा देश बन जाएगा। 2018 के फैसले के बाद से ही एलजीबीटी+ समुदाय के सदस्यों ने भारतीय समाज में अधिक प्रगति हासिल कर ली हैं।
टेलीविजन पर उनके चित्रण से लेकर राजनीति और समावेशी कॉर्पोरेट नीतियों में समुदाय ने अधिक महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व प्रगति की है।फिर भी कई लोग कहते हैं कि वे अभी भी बड़े पैमाने पर रूढ़िवादी भारत में खुलकर बोलने से डरते हैं जहां भेदभाव और दुर्व्यवहार एलजीबीटी+ लोगों को नौकरी, स्वास्थ्य, शिक्षा और आवास तक के लाले पड जाते हैं।
आखिर LGBT क्या है?
होमोसेक्सुअल, बाईसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर या कुछ और।
भारत में भी अब LGBTQ प्राइड मंथ आयोजित किया जाता है। साल 2017 में प्राइड मार्च के दौरान करीब 17000 प्रतिभागी शामिल हुए थे। दिल्ल, मुंबई, बेंगलुरू, भुवनेश्वर, भोपाल, सूरत, हैदाराबाद, चंडीगढ़, ओडिशा, और देहरादून में प्राइड मंथ मनाया जाता है और मार्च परेड भी निकाला जाता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शन 377 पर फैसला सुनाते हुए समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। इससे पहले तक समलैंगिक संबंधों को अपराध माना जाता रहा और समलैंगिक अपराधी की तरह दबे-छुपे रहने को मजबूर थे।
- समलैंगिकता अपराध है या ईश्वर की एक लीला अन्यथा ईश्वर की मर्जी के बगैर संसार में एक पत्ता भी नहीं हिलता फिर इतना बड़ा इंकलाब कैसे जन्म ले सकता है।
- दरअसल LGBT एक संयुक्त नाम है जो लैस्बियन, गे, बायसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर को मिलाकर बना है। वैसे तो इनके अलावा भी कुछ उपनाम हैं, लेकिन मोटे तौर पर इन्हें समझना भी काफी है। समलैंगिकता का अस्तित्व सभी संस्कृतियों और देशों में पाया गया है, यद्यपि कुछ देशों की सरकारें इस बात का खण्डन करती है।
- दरअसल इंसानी तौर पर हम विपरीत आकर्षण को सामान्य मानते हैं बाकी को असामान्य... जैसे पुरुष का स्त्री के प्रति आकर्षण और स्त्री का पुरुष के प्रति आकर्षण एक सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन इसके अलावा भी आकर्षण कई रूपों में हो सकता है, जिसे हम असामान्य करार देकर कई अलग-अलग कैटेगिरी में डिवाइड करते l
- L (लेस्बियन) - ये शब्द उन महिलाओं के लिए उपयोग किया जाता है जो दूसरी महिलाओं की ओर आकर्षित होती हैं. उनसे प्यार करती हैं और यौन संबंध बनाना चाहती है. वहीं आपको बता दें इसमें ऐसा भी हो सकता है कि एक महिला का बर्ताव और लुक एक पुरुष की तरह ही हो और संबंध महिला से ही हो.
- G (‘गे’) - ये शब्द उनके लिए इस्तेमाल किया जाता है जो एक आदमी होकर आदमी की ओर आर्कषित हो.
- T- (ट्रांसजेंडर)- ये थर्ड जेंडर में आते हैं. ये वो लोग होते हैं जिनके जननांग( प्राइवेट पार्ट) पैदा होते वक्त पुरुष की तरह होते हैं और जिसे लड़का माना जाता है. लेकिन समय के साथ जब ये लोग बड़े होते हैं और अपने अस्तित्व को पहचनाते हैं तो खुद को लड़की मानते हैं. तो उन्हें 'ट्रांसवुमेन' कहा जाएगा और इसके उलट हो जाए तो उन्हें 'ट्रांसमेन' कहा जाएगा।
- I - (इंटर-सेक्स)- ये भी ट्रांसजेंडर का हिस्सा माना जाता है. ये वह लोग होते हैं जिनके पैदा होने के बाद उनके जननांग (प्राइवेट पार्ट) देखकर ये साफ नहीं हो पाता कि वह लड़का है या लड़की।
- Q - (क्वीयर)- सारी LGBTI समुदाय काे क्वीयर समुदाय कहते हैं. हम ये भी कह सकते हैं जो जो इंसान ना अपनी पहचान तय कर पाए हैं ना ही शारीरिक चाहत, यानी जो ना खुद को आदमी, औरत या ‘ट्रांसजेंडर’ मानते हैं और ना ही ‘लेस्बियन’, ‘गे’ या ‘बाईसेक्सुअल’, उन्हें ‘क्वीयर’ कहते हैं।
Neelu Trivedi
PRESIDENT OF STREE WELFARE FOUNDATION,
MISSION CANCER FREE INDIA
MISSON-MAHILA & BAAL SURAKSHA KAVACH