सेटिंग-गेटिंग से मिलती कैदियों को पैरोल : कैदियों के परिजनों से रिपोर्ट लगाने के लिए होती वसूली ; जेल से लेकर, डीएम कार्यालय, पुलिस, जेल मुख्यालय व शासन में होती पैरवी
सलाखों से आजाद हुए कैदियो ने बताया कि पैरोल के लिए परिजन व कैदी जेल के एआर सेक्शन में आवेदन देते है। सेक्शन से रोल तैयार होकर जेलर के माध्यम से वरिष्ठ अधीक्षक के पास जाता है। एक रोल मुख्यालय व दूसरा कैदी के जिले के डीएम को भेजा जाता है। डीएम कार्यालय से प्रोबेशन व एसपी के पास जाता है। स्थानीय पुलिस, प्रोबेशन की रिपोर्ट लगने के बाद यह जेल मुख्यालय आता है। जेल मुख्यालय से इसको शासन भेजा जाता है
लखनऊ। प्रदेश की जेलों से सजायाफ्ता कैदियों की पैरोल जेल से लेकर शासन तक सेटिंग होने पर मिलती है। यह खुलासा जेल से रिहा हुए आजीवन कारावास की सजा पूरी कर आजाद हुए कैदियों ने किया है। कैदियों के कहना है पैरोल के लिए हर स्तर पर कैदी की शक्ल देखकर की जाती है। कैदी के परिजनों की जेल से शासन तक सेटिंग हो तो उसकी पैरोल आसानी से स्वीकृत हो जाती है। इसके लिए कैदी के परिजनों को दौड़भाग जरूर करनी पड़ती है।
मुख्य बातें
- जेलों से रिहा हुए कैदियों से हुई पड़ताल में हुआ सच का खुलासा
- सेटिंग-गेटिंग से मिलती कैदियों को पैरोल
- कैदियों के परिजनों से रिपोर्ट लगाने के लिए होती वसूली
- जेल से लेकर, डीएम कार्यालय, पुलिस, जेल मुख्यालय व शासन में होती पैरवी
कोरोना कॉल के दौरान देश की सर्वोच्च न्यायालय ने जेलों में बढ़ते संक्रमण को देखते हुए सात साल तक कि सजा पाने वाले कैदियों को पैरोल पर रिहा किये जाने का निर्देश दिया था। इस निर्देश पर फैज़ाबाद जेल से फांसी की सजा पाए चार सजायाफ्ता कैदियों को पैरोल पर छोड़ दिया गया। इस मामले को लेकर इनदिनों शासन व जेल मुख्यालय में हड़कंप मचा हुआ है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने इसके लिए मुख्य सचिव तक को तलब किया।
इस मामले की पड़ताल के लिए जब जेल से आजीवन कारावास की सजा काटकर रिहा हुए कैदियों से की गई तो चौकानें वाला खुलासा हुआ है। सलाखों से आजाद हुए कैदियो ने बताया कि पैरोल के लिए परिजन व कैदी जेल के एआर सेक्शन में आवेदन देते है। सेक्शन से रोल तैयार होकर जेलर के माध्यम से वरिष्ठ अधीक्षक के पास जाता है। एक रोल मुख्यालय व दूसरा कैदी के जिले के डीएम को भेजा जाता है। डीएम कार्यालय से प्रोबेशन व एसपी के पास जाता है। स्थानीय पुलिस, प्रोबेशन की रिपोर्ट लगने के बाद यह जेल मुख्यालय आता है। जेल मुख्यालय से इसको शासन भेजा जाता है।
कैदियों ने बताया कि जेल में रोल तैयार कराने से लेकर डीएम कार्यालय के प्रोबेशन, एसपी कार्यालय, स्थानीय दारोगा, जेल मुख्यालय के बाबुओं के साथ शासन के सेक्शन बाबुओं को सुविधा शुल्क देना पड़ता है। सुविधा शुल्क न देने पर रोल को दबा देने के साथ रिपोर्ट निगेटिव लिख दी जाती है। इस काम मे कितना खर्च आता है के सवाल पर कैदियों के कहना है कि यह वसूली कैदी पर लगी धाराओं के साथ उसके हालात देखकर की जाती है। कैदियों की मानें तो फांसी की सजा पाए कैदियों की पैरोल स्वीकृत कराने के लिए मोटी रकम वसूल की गई होगी। कैदियों के कहना है कि जेलो में बगैर सुविधा शुल्क दिए कोई काम ही नही होता है। कोई पैरोल फ्री में नही होती है।
आदर्श कारागार में कैदियों का हो रहा शोषण लखनऊ। वरिष्ठ अधीक्षक विहीन राजधानी की आदर्श कारागार में कैदियों को पुनर्वास योजना के तहत जेल से बाहर काम पर निकालने के लिए जमकर वसूली की जा रही है। सूत्रों का कहना है कि कैदियों को जेल के बाहर व्यवसाय करने के लिए निकालने के लिए 20 से 25 हज़ार वसूल किये जा रहे है। गन्ना फार्म तक के लिए सुविधा शुल्क लिया जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि इस जेल का कमाऊ आहरण-वितरण (डीडीओ) मुख्यालय के वरिष्ठ अधीक्षक अम्बरीष गौड़ के पास, नियुक्ति व दंड का अधिकार लखनऊ जेल के अधीक्षक आशीष तिवारी के पास है। फसने वाला प्रशासनिक प्रभार जेलर के पास है। |
राकेश यादव
स्वतंत्र पत्रकार
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