विदेशी कैदी की गलत रिहाई पर नहीं हुई कोई कार्यवाही : जेल अफसरों पर कार्यवाही में शासन अपना रहा दोहरा मापदंड, नोएडा में विचाराधीन बन्दी की रिहाई पर अधीक्षक को किया निलंबित

चार साल पहले नोएडा से एक विचाराधीन बन्दी की रिहाई के मामले में तत्कालीन जेल अधीक्षक को निलंबित कर दिया गया। शासन के अफसरों ने न्यायालय की अवमानना का मामला बताते हुए यह कार्यवाही की। जो विभाग प्रदेश के मुख्यमंत्री के पास हो उस विभाग में बैठे अफसरों के कार्यवाही में दोहरा मापदंड अपनाए जाने का मामला विभागीय अफसरों में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसको लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही है।

विदेशी कैदी की गलत रिहाई पर नहीं हुई कोई कार्यवाही :  जेल अफसरों पर कार्यवाही में शासन अपना रहा दोहरा मापदंड, नोएडा में विचाराधीन बन्दी की रिहाई पर अधीक्षक को किया निलंबित
जिला जेल लखनऊ

लखनऊ। राजधानी की जिला जेल से एक विदेशी बन्दी को गलत रिहा कर दिया गया। एक पखवारा पूर्व हुई इस गलत रिहाई पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई। ऐसा तब है जब प्रदेश के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर ने इस लापरवाही के लिए दोषी जेल अफसरों के खिलाफ कार्यवाही की संस्तुति की थी। वही चार साल पहले नोएडा से एक विचाराधीन बन्दी की रिहाई के मामले में तत्कालीन जेल अधीक्षक को निलंबित कर दिया गया। शासन के अफसरों ने न्यायालय की अवमानना का मामला बताते हुए यह कार्यवाही की। जो विभाग प्रदेश के मुख्यमंत्री के पास हो उस विभाग में बैठे अफसरों के कार्यवाही में दोहरा मापदंड अपनाए जाने का मामला विभागीय अफसरों में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसको लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही है। 

मिली जानकारी के मुताबिक बीते करीब एक पखवारा पूर्व राजधानी की  जिला जेल से सजायाफ्ता बांग्लादेशी कैदी जहीर खान को आम बन्दियों की तरह रिहा कर दिया। ऐसा तब किया गया जब रिहा होने वाले विदेशी बन्दी को एलआईयू को सुपुर्द किये जाने का नियमों में प्रावधान है। विदेशी कैदी की रिहाई की सूचना मिलते ही पुलिस महकमे के अधिकारियों में हड़कंप मच गया। एडीजी कानून व्यवस्था ने इस लापरवाही के लिए दोषी जेल अफसरों के खिलाफ कार्यवाही की संस्तुति की। सूत्रों का कहना है कि डीजी जेल ने इस लापरवाही की जांच लखनऊ परिक्षेत्र के डीआईजी जेल को सौंपी। एक पखवाड़े पहले डीआईजी जेल को सौपी गयी जांच की जांच रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है। सूत्रों की मानें तो चहेते अधिकारी को बचाने के लिए जांच रिपोर्ट को ही दबा दिया गया है। ऐसा पहली बार नही हुआ है। इससे पहले भी जेल में 35 लाख रुपये की नगद धनराशि बरामद होने के मामले की भी तत्कालीन डीआईजी जेल ने जांच की थी। उस मामले में भी दोषियों के खिलाफ अभी तक कोई कार्यवाही नही की गई। बताया गया है कि जांच अधिकारी ने मोटी रकम लेकर पूरे मामले को ही निपटा दिया। ऐसा तब किया गया जब जेल के अंदर नगद धनराशि की बात तो छोड़िए सुई व ब्लेड तक ले जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। इतनी मोटी रकम जेल के अंदर कैसे पहुँची इसकी तो जांच ही नहीं की गई।

वही दूसरी ओर नोएडा जेल में करीब चार साल पहले सुप्रीमकोर्ट के रिहाई पर रोक लगाने व हाइकोर्ट से रिहाई आदेश मिलने पर विचाराधीन बन्दी अरुण कुमार को जेल अधिकारियों ने जेल से रिहा कर दिया। मामला न्यायालय से जुड़ा होने के कारण शासन में बैठे जेल विभाग के आला अफसरों ने आनन फानन में तत्कालीन जेल अधीक्षक विपिन मिश्रा को निलंबित कर दिया। सूत्रों का कहना है कि ऐसा तब किया गया है जब विचाराधीन बन्दी के रिहाई की जिम्मेदारी जेलर व डिप्टी जेलर की होती है। सजायाफ्ता कैदी की रिहाई की जिम्मेदारी अधीक्षक की होती है। शासन में बैठे अफसरों के कार्यवाही में दोहरा मापदण्ड अपनाने व तानाशाही से अफसरों में खासा आक्रोश व्याप्त है। चहेते अफसरों को बचाने के लिए बेतरतीब तरीके से की जा रही कार्यवाहियों को लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही है। उधर इस संबंध में एसीएस होम अवनीश अवस्थी से काफी प्रयासों के बाद भी संपर्क नही हो पाया। जेल मुख्यालय के अफसरों ने इसे शासन का मामला बताते हुए कोई भी टिप्पणी करने से मना कर दिया।

भृष्ट अफसरों को बचाने में महारत हासिल!

लखनऊ। जेल विभाग के चहेते दोषी अफसरों को बचाने में शासन व मुख्यालय में बैठे अफसरों को महारत हासिल है। लखनऊ जेल से विदेशी कैदी की गलत रिहाई, जेल के अंदर लाखों को धनराशि बरामद होने, बन्दियों को पीटकर वसूली करने, दो कैदियों की फरारी, उत्पीड़न से आजिज आकर के बन्दियों के आत्महत्या करने जैसे कई मामले होने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं की गई। वही बांदा जेल में अधीक्षक के प्रभार नहीं संभालने एवम नोएडा में हुई गलत रिहाई पर अधीक्षकों को निलंबित कर दिया गया। लखनऊ जेल में वर्तमान समय मे वही जेल अधीक्षक व जेलर तैनात है जिनकी तैनाती के दौरान उत्पीड़न से आजिज बन्दियों ने बनारस जेल में जमकर बवाल काटा था। शासन ने फिर दोनों को एक ही जेल पर तैनात कर दिया है।

राकेश यादव
स्वतंत्र पत्रकार
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