संदिग्ध न्यायिक चरित्र के अधिकारी डीआईजी जेल संजीव : जेलर ने डीजी को पत्र लिखकर डीआईजी जेल पर लगाए गंभीर आरोप, विभागीय जॉच में नही इनसे निष्पक्ष जांच की उम्मीद

प्रदेश कारागार विभाग में प्रयागराज व अयोध्या परिक्षेत्र के डीआईजी जेल संजीव त्रिपाठी संदिग्ध न्यायिक चरित्र के अधिकारी है। इन्होंने अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए अपने कार्यकाल में सदैव अपनी सुविधानुसार भेदभावपूर्ण व पक्षपातपूर्ण कार्यवाहियां व जांचे की जाती रही है। ऐसे अधिकारी से निष्पक्ष जांच की उम्मीद करना बेमानी है। यह बात न्यायालय से बहाल हुए जेलर ने महानिदेशक पुलिस/महानिरीक्षक जेल को भेजे गए पत्र में लिखी है।

संदिग्ध न्यायिक चरित्र के अधिकारी डीआईजी जेल संजीव : जेलर ने डीजी को पत्र लिखकर डीआईजी जेल पर लगाए गंभीर आरोप, विभागीय जॉच में नही इनसे निष्पक्ष जांच की उम्मीद
उत्तर प्रदेश कारागार विभाग

लखनऊ। प्रदेश कारागार विभाग में प्रयागराज व अयोध्या परिक्षेत्र के डीआईजी जेल संजीव त्रिपाठी संदिग्ध न्यायिक चरित्र के अधिकारी है। इन्होंने अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए अपने कार्यकाल में सदैव अपनी सुविधानुसार भेदभावपूर्ण व पक्षपातपूर्ण कार्यवाहियां व जांचे की जाती रही है। ऐसे अधिकारी से निष्पक्ष जांच की उम्मीद करना बेमानी  है। यह बात न्यायालय से बहाल हुए जेलर ने महानिदेशक पुलिस/महानिरीक्षक जेल को भेजे गए पत्र में लिखी है। उन्होंने मांग कि है कि उनकी विभागीय जांच इनसे न कराकर किसी अन्य अधिकारी से कराई जाए। जिससे उन्हें न्याय मिल सके।

डीआईजी पर लगे गंभीर आरोपो पर जेल मुख्यालय मौन

न्यायालय से बहाल हुए जेलर ने जेल मुख्यालय की ओर डीआईजी जेल प्रयागराज संजीव त्रिपाठी से कराई जा रही विभागीय जांच पर सवाल उठाते हुए कहा कि ललितपुर जेल के एक प्रकरण में इनकी भूमिका संदिग्ध रही है। डीजी जेल को भेजे गए पत्र में उन्होंने कहा है कि मामला वर्ष-2017 का है ललितपुर जेल में तैनाती के दौरान उन्होंने वार्डर प्रेमबाबू तिवारी के शासकीय कार्यो में उदासीनता, बन्दियों से दुर्व्यवहार व वसूली के लिए इस वार्डर का दूरस्थ स्थानांतरण किये जाने की सिफारिश की थी। आगरा परिक्षेत्र के तत्कालीन वरिष्ठ अधीक्षक/ डीआईजी संजीव त्रिपाठी ने दोषी वार्डर के खिलाफ कोई कार्यवाही ही नही की। दोषी वार्डर के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत कराया गया। मुकदमे की विवेचना क्षेत्राधिकारी ने करते हुए वार्डर के आरोप सिद्ध होने पर मुकदमा चलाने के लिए तत्कालीन नियुक्ति अधिकारी (संजीव त्रिपाठी) से अनुमति मांगी। उन्होंने इसकी अनुमति नही दी। बाद में न्यायालय के हस्तक्षेप पर दोषी वार्डर के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति प्राप्त हो सकी। इस प्रकरण में संजीव त्रिपाठी को भूमिका संदिग्ध रही। पत्र में कहा गया है ऐसे संदिग्ध न्यायिक चरित्र के अधिकारी से जांच में न्याय मिलना संभव नहीँ है।

मालूम हो कि मुरादाबाद जेल में तैनात जेलर रीबन सिंह को कॅरोना काल मे हीलाहवाली के आरोप में निलंबित कर दिया गया था। इस पर जेलर ने जेल में मची लूट की शिकायत जांच के लिए न्यायालय की शरण मे चला गया। इस प्रकरण की डीआईजी आगरा रेंज व कमिश्नर मुरादाबाद से कराई गई। दोनों जांच में   तत्कालीन अधीक्षक को दोषी ठहराया गया। शासन ने इस प्रकरण की मुख्यालय से विभागीय जांच कराए जाने का निर्देश दिया। मुख्यालय ने यह जांच प्रयागराज रेंज डीआईजी संजीव त्रिपाठी को सौंपी है। न्यायालय के आदेश पर बहाल हुए जेलर ने डीआईजी संजीव त्रिपाठी को संदिग्ध चरित्र का न्यायिक अधिकारी बताते हुए विभागीय जांच किसी अन्य अधिकारी से कराए जाने की मांग की है।  जेल मुख्यालय के अधिकारी इस मसले पर मौन धारण किये हुए है।

राकेश यादव
स्वतंत्र पत्रकार
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