हुजूर आते आते बहुत देर कर दी : राजनीतिक लाभ के लिए वापस हुए कृषि कानून ; समय रहते लिया होता फैसला तो बच जाती सैकड़ो किसानों की जान

भाजपा के नेता मीडिया और अपनी जनसभाओं में यह कहते नहीं थकते थे कि कृषि बिलों का विरोध कर रहे आंदोलनरत किसान केवल मुट्ठीभर हैं और देश के अधिकांश किसान इन कृषि बिलों के समर्थन में केन्द्र सरकार के साथ हैं।

हुजूर आते आते बहुत देर कर दी : राजनीतिक लाभ के लिए वापस हुए कृषि कानून ; समय रहते लिया होता फैसला तो बच जाती सैकड़ो किसानों की जान
राजनीतिक लाभ के लिए वापस हुए कृषि कानून

लखनऊ। देर आए दुरुस्त आए..., लेकिन बहुत देर कर दी हुजूर आते-आते। अगर आप अपने स्वार्थों को दरकिनार कर देते और जिद का रास्ता नहीं अपनाते तो शायद देश किसान आंदोलन से हुई राष्ट्रीय क्षति और सैकड़ो उन किसानों की जान बच जाती जो इस आंदोलन के दौरान शहीद हो गए। बीते एक साल से अधिक समय से चल रहे किसान आंदोलन के बाद अब आप कह रहे हैं कि आपका दिल साफ है, आपकी नियत साफ है लेकिन आपके आज लिए गए तीनों कृषि बिल के वापसी का फैसला अगर आंदोलन आरंभ होने के तुरंत बाद ही ले लिया जाता तो देश के किसानों को यह दंश नहीं झेलना पड़ता। हकीकत यह है कि राजनीतिक लाभ के लिए यह फैसला लिया गया है।

तपती गर्मी की लू, कड़कड़ाती ठंड, मूसलाधार बारिश और कोरोना महामारी के चलते इस बड़े आंदोलन के दौरान गयी जाने तो अब वापस आ नही सकती हैं। आज आपने गुरु पर्व के पावन दिन का तोहफा बताकर उन तीन कृषि बिलों को वापिस लेने का ऐलान किया है जिन तीन बिलों को देशभर का किसान काले बिल बताकर उसे वापस लिए जाने का विरोध करते हुए सड़कों पर बैठकर आंदोलन कर रहा था। इस पूरे बीते एक साल में भाजपा के कई बड़े नेता उन आंदोलनरत किसानों को आतंकवादी, उग्रवादी, पाकिस्तानी समर्थक और चीन के एजेंट बताकर उन्हें देशद्रोही बता रहे थे।

भाजपा के नेता मीडिया और अपनी जनसभाओं में यह कहते नहीं थकते थे कि कृषि बिलों का विरोध कर रहे आंदोलनरत किसान केवल मुट्ठीभर हैं और देश के अधिकांश किसान इन कृषि बिलों के समर्थन में केन्द्र सरकार के साथ हैं। आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट के नाम संदेश देते हुए अपने लंबे भाषण में कहा कि उन्हें दुख है कि वह आंदोलनरत किसानों को इन कृषि बिलों के समर्थन में ठीक से समझा नहीं पाए और किसानों के इतने लंबे आंदोलन के लिए वह किसानों से माफी मांगते हैं और उनसे अपील करते हैं कि वह अपना आंदोलन वापस लेकर अपने-अपने घरों को लौट जाएं और देश के लिए भविष्य की एक नई सोच बनाएं।

अब सवाल यह पैदा होता है कि बीते पूरे एक साल में जिन आंदोलनरत किसानों को भाजपा के कई वरिष्ठ नेता लगातार आतंकवादी, उग्रवादी, पाकिस्तान और चीन के एजेंट बताते रहे तो फिर आज प्रधानमंत्री ने उन किसानों से माफी क्यों मांगी जिन्हें उनकी पार्टी अब तक ऐसी श्रेणी में गिना रही थी। केन्द्र सरकार ने बिल वापसी का यह फैसला क्या उन मुट्ठीभर किसानों को ही खुश करने के लिए लिया है जिन्हें वे अब तक इसलिए नजरअंदाज करते नजर आ रहे थे कि वह देश के किसानों की संख्या का एक बहुत छोटा अंश हैं और अधिकांश किसान इस मामले में केन्द्र सरकार के ही साथ हैं। तो क्या प्रधानमंत्री की आज की इस घोषणा से वह किसान नाराज नहीं होंगे जिन्हें भाजपा अब तक किसानों का एक बड़ा हिस्सा बताती रही है।

राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो केन्द्र सरकार ने इन तीनों कृषि बिलों को वापिस लेने का फैसला मजबूरी में और विकल्प के अभाव में लिया है। बताया जाता है कि केन्द्र सरकार की खुफिया एजेंसियों ने यह रिपोर्ट दी है कि अगर किसानों को तुरंत राहत न दी गई और उनकी नाराजगी जारी रही तो आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ सकता है। खासतौर पर उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड में। पिछले कुछ उपचुनावों और प्रदेश के चुनावों को लेकर पहले ही भाजपा काफी नुकसान उठा चुकी है लिहाजा दूध की जली यह पार्टी अब आगे और नुकसान नहीं उठाना चाहती। भाजपा के ही एक वरिष्ठ साथी मौजूदा गर्वनर सतपाल मलिक ने बड़े खुले शब्दों में अपनी पार्टी को चेताया था कि अगर उसने तुरंत ही किसानों की नाराजगी दूर नहीं की और ये तीनों कृषि बिल वापस नहीं लिए तो अगले विधानसभा चुनावों में भाजपा का सूपड़ा साफ हो जाएगा।

भाजपा के किसी बड़े नेता ने अपने साथी राज्यपाल सतपाल मलिक के इस बयान का विरोध करना तो दूर इस पर किसी तरह की प्रतिक्रिया भी नहीं दी।

आज सिक्ख पंत के गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व पर प्रधानमंत्री ने जो ऐलान किया है वो पंजाब में अपनी नई व्यवस्था बनाने और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्द्र सिंह को पंजाब में फिर से स्थापित करने की नजर से ही देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री के इस ऐलान के बाद भी किसान आंदोलन एकदम से समाप्त होता नजर नहीं आ रहा है।

संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं का कहना है कि जब तक ये तीनों काले कृषि कानून संसद से वापिस नहीं लिए जाते तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा। संभावना यह भी है कि संसद से कानूनों की वापसी के बाद भी यह बात सामने आए कि इस सालभर के किसान आंदोलन में जिन सात सौ किसानों ने अपनी जान गंवाई है उन्हें देश के शहीदों का दर्जा दिए जाए और उनके परिवारों को उचित मुआवजा दिया जाए। फिलहाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नतमस्तक हो घुटने टेकने को राजनीतिक लाभ से अलग हटकर अधिक कुछ और नहीं l

राकेश यादव
स्वतंत्र पत्रकार
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