आईजी जेल के तुगलकी फरमान से उड़ी अफसरों की नींद
जेलों में बंदियों को अल्फाबेटिकल रख पाना आसान नहीं ड्यूटी में रोस्टर प्रणाली लागू होने से अस्त व्यस्त होगी व्यवस्था
लखनऊ। प्रदेश की जेलों में बंदियों को अल्फाबेटिकली (नाम के प्रथम अक्षर के हिसाब से) रखा जाए। हेड वार्डर, वार्डर और नंबरदारों की ड्यूटी में रोस्टर प्रणाली लागू की जाए। आईजी जेल के यह तुगलकी फरमान जेल अफसरों को रास नहीं आ रहे है। इससे अफसरों की नींद उड़ी हुई है। इस व्यवस्था को लागू किया गया तो जेलों की व्यवस्था अस्त व्यस्त हो जायेगी। इस व्यवस्था को लागू कर पाना जेल अफसरों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। हकीकत तो यह है प्रदेश में कई जेल ऐसी हैं जहां इतनी बैरक ही नहीं है जहां पर बंदियों को अक्षर के हिसाब से रखा जा सके।
कारागार विभाग के डीजी पुलिस/ आईजी जेल पीवी रामा शास्त्री ने हाल ही में दो फरमान जारी किए हैं। पहले फरमान में कहा कि प्रदेश की समस्त जेलों में अब बंदियों को नाम के प्रथम अक्षर से बैरेक का आवंटन सुनिश्चित किया। इसमें यह भी कहा गया कि दो विरोधी गुटों के बंदियों को रखने में यह व्यवस्था लागू नहीं होगी। इसके साथ ही हालतों को देखकर जेल प्रशासन इसमें बदलाव भी कर सकता है। सूत्र बताते है ऐसा फरमान विभाग में पहली बार नहीं जारी किया गया है। इससे पहले भी ऐसा एक फरमान लागू किया जा चुका है। जेलों में अक्षर के हिसाब से बैरेक नहीं होने और व्यवहारिकता में संभव नहीं हो पाने की वजह से यह लागू नहीं हो पाया था। इस बार फरमान लागू कराने के लिए कई जेलों में नई बैरकों का निर्माण कराए जाने के भी निर्देश दिए गए हैं। किंतु व्यवहारिकता में इस फरमान के लागू हो पाने की संभावनाएं कम ही नजर आ रही हैं।
मुख्यालय में कब लागू होगी रोस्टर प्रणाली!
कारागार मुख्यालय में रोस्टर प्रणाली कब लागू होगी। यह सवाल मुख्यालय के अधिकारियों और बाबु संवर्ग में चर्चा का विषय बना हुआ है। चर्चा है मुख्यालय में कई बाबू पिछले 25-30 साल से गोपनीय, अधिष्ठान, विधि, डिप्टी जेलर और जेलर अधिष्ठान जैसे कमाऊ अनुभागों पर कब्जा जमाए हुए है। यह बाबू घूम फिरकर इन्हीं अनुभागों में लगाए जाते रहते है। इन कमाऊ पूतों की वजह से अन्य बाबुओं को इन पटलों पर काम करने का मौका ही नहीं मिलता है। मुख्यालय के बाबुओं पर रोस्टर प्रणाली के लागू होने से प्रत्येक बाबू को अपने अंदर छिपी प्रतिभा और योग्यता को प्रदर्शित करने का मौका मिलेगा। इसके साथ ही कमाऊ अनुभागों में लगे बाबूओं का काकस भी खत्म हो जाएगा।
इसी प्रकार जेलों में हेड वार्डर, वार्डर और नंबरदारों की ड्यूटी में रोस्टर प्रणाली लागू किए जाने का निर्देश दिया गया है। यह फरमान भी हवा हवाई ही नजर आ रहा है। रोस्टर प्रणाली हेड वार्डर और वार्डर की ड्यूटी में तो लागू की जा सकती है, किंतु नंबरदारों पर इसे लागू करने को लेकर पशोपेश की स्थिति बनी हुई है। जेलों में अधिकांश काम जेल अधिकारी, सुरक्षाकर्मियों के बजाए नंबरदार ही करते है। सूत्र बताते है जेलों में कहने को कैदियाना और हवालात प्रभारी डिप्टी जेलर होते हैं लेकिन इसका पूरा काम नंबरदार ही करते है। हवालात और कैदियाना का काम काफी जटिल होता है।कई अधिकारी तो इसको करने से पहले ही हाथ खड़ा कर देते है। कैदियाना में सजायाफ्ता कैदियों के सजा की गणना करना और हवालात से प्रतिदिन बंदियों को पेशी पर अदालत भेजना आसान काम नहीं है। यह काम नंबरदार ही करते है। इसके लिए इन्हें महीनों प्रशिक्षित किया जाता है। विभाग के ज्यादातर कर्मियों को तो यह काम आता ही नहीं है। ऐसे में नंबरदार की ड्यूटी में रोस्टर प्रणाली लागू होने से जेलों की व्यवस्था के अस्त व्यस्त होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। ऐसे में इन फरमानों का लागू हो पाना आसान नहीं होगा।