चुनाव आयोग हटाएगा जेलरों को : चुनाव प्रभावित कर सकते हैं लंबे समय से जमें जेलर, करीब डेढ़ दर्जन जेलर कमाऊ जेलों पर डटे
लखनऊ जेल में सम्बद्ध जेलर अजय राय ने आदर्श कारागार में तैनात रहते हुए करीब छह माह तक बगैर किसी आदेश के ही जिला जेल में बतौर जेलर काम किया। इस मामले का खुलासा होने पर विभाग ने खामियों को छिपाने के लिए आनन फानन में उन्हें प्रोन्नति के बाद जिला जेल में ही तैनात कर दिया गया। इसी प्रकार रामशिरोमणि पिछले चार साल से अधिक समय से सीतापुर में तैनात है। बताया गया है कि सहारनपुर के राजेश पांडे, आगरा के राजेश सिंह, मेरठ के राजेन्द्र सिंह ने तो घूम फिरकर पश्चिम की ही जेलो में जमे हुए है।
लखनऊ। प्रदेश की करीब डेढ़ दर्जन जेलर लंबे समय से एक ही जेल पर जमे हुए है। इससे जेलों से चुनाव प्रभावित हो सकते है। इसमें इन जेलरों की अहम भूमिका हो सकती है। लंबे समय से एक ही जेल पर जमे जेल अधिकारियों को चुनाव आयोग हटा पायेगा। यह सवाल विभागीय अधिकारियों में चर्चा का विषय बना हुआ है। अवैध वसूली कर अपराधियो को सुविधाएं व संरक्षण देने का मामला पहले से जगजाहिर है। ऐसे में इन अधिकारियों पर कभी भी गाज गिर सकती है।
दो दिन पहले चुनाव आयोग के प्रदेश में विधनसभा चुनाव की तिथियां घोषित कर दी। इस घोषणा के बाद प्रदेश के एडीजी लॉ एंड आर्डर ने जेल से प्रभावित होने वाले चुनाव पर निगरानी रखे जाने का बयान देकर जेल विभाग में खलबली मचा दी है। जेल अधिकारियों और अपराधियों के बीच का कॉकस जगजाहिर है। जेल अधिकारी अवैध वसूली कर बन्दियों को वह सुविधाये मुहैया करा देते है जिनका नियमो में कोई प्रावधान ही नही है।
सूत्रों का कहना है कि सहारनपुर में राजेश पांडेय, सीतापुर में राम शिरोमणि यादव, मेरठ में राजेंद्र सिंह, नोएडा में एके सिंह, नैनी सेंट्रल जेल में डीपी सिंह, उन्नाव में राजेश सिंह, इटावा में राम कुबेर सिंह, कानपुर देहात में केके सिंह, गोरखपुर में पीएस शुक्ला, महराजगंज में अरविंद श्रीवास्तव, सुल्तानपुर में अपूर्व व्रत पाठक, गोंडा में जितेंद्र भारती, आगरा में राजेश सिंह, बरेली में राजीव मिश्र और लखनऊ में अजय राय लंबे समय से जमे हुए है।
विभागीय जानकारों का कहना है कि लखनऊ जेल में सम्बद्ध जेलर अजय राय ने आदर्श कारागार में तैनात रहते हुए करीब छह माह तक बगैर किसी आदेश के ही जिला जेल में बतौर जेलर काम किया। इस मामले का खुलासा होने पर विभाग ने खामियों को छिपाने के लिए आनन फानन में उन्हें प्रोन्नति के बाद जिला जेल में ही तैनात कर दिया गया। इसी प्रकार रामशिरोमणि पिछले चार साल से अधिक समय से सीतापुर में तैनात है। बताया गया है कि सहारनपुर के राजेश पांडे, आगरा के राजेश सिंह, मेरठ के राजेन्द्र सिंह ने तो घूम फिरकर पश्चिम की ही जेलो में जमे हुए है। यह तो बानगी है। ऐसे तमाम जेलर है जिन्होंने शासन व मुख्यालय में साठ-गांठ करके अपने को तबादला एक्प्रेस से दूर रख रखा है।
सूत्रों का कहना है कि लंबे समय से एक ही जेल पर जमे इन अधिकारियों के बड़ी संख्या में जेल में बंद नेताओ और अपराधियों से अच्छे संबंध है। यह अधिकारी इन अपराधियो से साठ गांठ करके चुनावो को प्रभावित कर सकते है। दो-ढाई साल से चार साल तक रहने वाले इन जेल अधिकारियों को चुनाव आयोग हटा पाएगा। इनको हटाये बगैर निष्पक्ष चुनाव हो पाने की संभावना कम ही नज़र आ रही है। उधर जेल मुख्यालय के अधिकारी इस मसले पर कुछ भी बोलने से बचते नज़र आ रहे है।
विभाग में तबादलो का कोई पैमाना नहीं लखनऊ। कारागार विभाग में तबादलो के मामले में कोई नियम और कानून मायने नही रखता है। इस विभाग में एक अधिकारी का एक साल में दो बार तबादला कर दिया जाता है, वही वर्षों से एक स्थान पर जमे अधिकारियों को छुआ तक नही जाता है। जुलाई माह में झांसी के अधीक्षक राजीव शुक्ला का एटा तबादला किया। पांच महीने भी नही बीते थे कि उन्हें एटा से बरेली भेज दिया गया। इसी प्रकार पांच माह पूर्व आदर्श कारागार से ललितपुर जेल भेजे गए जेलर वीरेंद्र कुमार वर्मा को छह माह भी नही हो पाए कि उन्हें बांदा भेज दिया गया। डिप्टी जेलर संजय शाही को शाहजहांपुर भेजा गया था पांच माह भी नही हुए की उन्हें गाज़ियाबाद जेल भेज दिया गया। विभाग में सुविधा शुल्क का बोलबाला होने से यह तबादले किये गए है। |
राकेश यादव
स्वतंत्र पत्रकार
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