मुरादाबाद के बाद वाराणसी जेल का भी किया हाल-बेहाल

वाराणसी अधिवक्ताओं ने अधीक्षक पर लगाए गंभीर आरोप आरोपी अधीक्षक के खिलाफ शासन ने नहीं की कोई कार्यवाही जेल प्रशासन पर बंदियों से अवैध उगाही और उत्पीड़न के लगाए आरोप

मुरादाबाद के बाद वाराणसी जेल का भी किया हाल-बेहाल
वाराणसी जेल

लखनऊ। मुरादाबाद जेल पर तैनाती के दौरान बंदियों से अवैध वसूली, जेल में सट्टा बाजार चलाने, बंदियों की बैरेक बदलने के लिए मोटी रकम मांगने के आरोपों से घिरे वाराणसी जेल पर तैनात जेल अधीक्षक पर एक और गंभीर आरोप लगा है। मुरादाबाद मामले में कोई कार्यवाही नहीं होने से बेलगाम हुए अधीक्षक को एक बार फिर शासन बचाने की जुगत में लगा हुआ है। यह अधीक्षक रिटायरमेंट के पहले कमाई का कोई मौका चूकने नहीं चाहते है। यही वजह है कि अधिवक्ताओ की शिकायत के बाद भी दोषी अधीक्षक के खिलाफ कोई कार्यवाही करने के बजाए आला अफसर मामले को पहले की तरह ही दबाने की जुगत में लगे हैं।

सेटिंग गेटिंग वाले अफसरों पर नहीं होती कार्यवाही

कारागार विभाग में ऊंची पहुंच और शासन मुख्यालय में सेटिंग गेटिंग रखने वाले अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती है। बरेली, नैनी और बांदा जेल इसका उदाहरण है। इन जेलों पर बड़ी घटनाएं होने के बाद कार्यवाही के लिए मुख्यमंत्री को निर्देशित करना पड़ा। मुख्यमंत्री की निर्देश के बाद तीनों जेल अधीक्षकों को निलंबित किया गया। इसकी प्रकार राजधानी की जिला जेल के गल्ला गोदाम में 35 लाख की बरामदगी और साइन सिटी मामले में निलंबन की संस्तुति के बाद कोई कार्यवाही नहीं की गई। झांसी और मैनपुरी में 48 घंटे के दौरान दो दो बंदियों की मौत के बाद भी कार्यवाही करने के बजाए मामले को ही दबा दिया गया।

मिली जानकारी के मुताबिक मुरादाबाद जेल पर तैनाती के दौरान जेल अधीक्षक पर वही तैनात रहे एक अधिकारी ने कई गंभीर आरोप लगाए थे। सेवा से हटाए गए इस अधिकारी ने अधीक्षक पर जेल में बंदियों से अवैध वसूली करने के साथ जेल में सट्टा बाजार चलाने के मय साक्ष्य आरोप लगाए थे। अधिकारी ने शिकायत में कहा था कि जेल में अधीक्षक की तानाशाही से अराजकता का माहौल बन गया है। बंदियों की बैरेक बदलने के लिए मोटी रकम वसूल की जा रही है। इसके अलावा बंदियों का तरह तरह से आर्थिक शोषण किया जा रहा है। आरोपी अधीक्षक ने ऊंची पहुंच और जुगाड़ के बल पर पूरे मामले की शिकायत को ही दबवा दिया जाता है।

गांजा और कैंटीन का ठेका

शिकायत के अनुसार, जेल में गांजा बेचने का ठेका एक कैदी को दिया गया है, जो इसके बदले अधीक्षक को हर महीने 2.5 लाख रुपये अदा करता है। इसी प्रकार, कैंटीन संचालन का ठेका भी एक दोषसिद्ध बंदी को दिया गया है, जिससे अधीक्षक को प्रतिदिन 80,000 रुपये मिलते हैं। कैंटीन से पान, गुटखा, और अन्य सामग्री महंगे दामों पर बंदियों को बेची जाती हैं।

मुलाकात और पीसीओ में रिश्वतखोरी

शिकायत में यह भी बताया गया कि बंदियों और उनके परिजनों की मुलाकात के लिए 250 रुपये अतिरिक्त वसूले जाते हैं। पीसीओ सुविधा के नाम पर भी बंदियों से 100 से 2000 रुपये तक लिए जाते हैं, और इसका ठेका एक दोषसिद्ध बंदी को दिया गया है।

स्वास्थ्य सुविधाओं में घोर लापरवाही का आरोप

शिकायत में कहा गया कि बीमार बंदियों को अस्पताल भेजने के लिए रिश्वत मांगी जाती है। कई बार इलाज में देरी के कारण बंदियों की मौत हो चुकी है, जिसे हार्ट अटैक का बहाना बनाकर दिखाया जाता है।

सीसीटीवी किया जा रहा नजरअंदाज

शिकायत में यह भी उल्लेख किया गया कि पूर्व डिप्टी जेलर रत्न प्रिया ने छेड़खानी के आरोप लगाए थे, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। जेल में लगे सीसीटीवी कैमरों के सामने बंदी खुलेआम चिलम और गांजा पीते हैं, लेकिन अधिकारियों ने अब तक इसे नजरअंदाज किया है।

अधिवक्ताओं का अल्टीमेटम

वरिष्ठ अधिवक्ता शैलेन्द्र पाण्डेय ने कहा कि यदि इस मामले में जल्द कार्रवाई नहीं की गई, तो अधिवक्ता समुदाय आंदोलन शुरू करेगा। अधिवक्ताओं ने जिला कारागार की अव्यवस्थाओं को लेकर गहरी नाराजगी जताई है।

सूत्रों का कहना है कि इस शिकायत का पटाक्षेप अभी हो भी नहीं पाया था कि वाराणसी जेल में तैनात अधीक्षक की स्थानीय अधिवक्ताओ ने जिलाधिकारी, जिला एवं सत्र न्यायाधीश से लिखित शिकायत की है। शिकायत में अधिवक्ताओ ने आरोप लगाया है कि जेल अधीक्षक बंदियों से मुलाकात के नाम पर 500 रुपए और बंदियों को मनचाही बैरेक में स्थानांतरित करने के लिए पांच हजार रुपए वसूल कर रहे हैं। इसके साथ ही बिना मर्जी के बैरेक में ट्रांसफर करने के लिए 2100 रुपए लिए जा रहे है। पैसा नहीं देने वाले बंदियों की रायटर से पिटाई कराई जाती है। अधिवक्ता ने शिकायत पत्र में कहा है कि पूरी घटना सीसीटीवी में रिकॉर्ड है। उसने सीसीटीवी फुटेज को जांच कराकर दोषी अधीक्षक के खिलाफ कार्यवाही करने की गुहार लगाई। इसके बावजूद दोषी अधीक्षक के खिलाफ आज तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है। डीआईजी जेल मुख्यालय आरएन पांडेय से जब इस संबंध में बात करने का प्रयास किया गया तो उनका फोन ही नहीं उठा।