आईजी जेल का बाबुओं को निलंबित किया जाना अवैध!

निलंबन और ड्यूटी लगाने का आईजी को नहीं अधिकार नए जेल मैनुअल में आईजी का कोई पद ही सृजित नहीं

आईजी जेल का बाबुओं को निलंबित किया जाना अवैध!
जेल मुख्यालय

लखनऊ। जेल मैनुअल में महानिरीक्षक जेल (आईजी ) को ट्रांसफर, निलंबन और अस्थाई ड्यूटी लगाने का कोई अधिकार ही प्राप्त नहीं है। हकीकत यह है कि मैनुअल में आईजी जेल का कोई पद ही सृजित नहीं है। यह अधिकार महानिदेशक कारागार को दिया गया है। बगैर अधिकार के निलंबन, ट्रांसफर और अधिकारियों और कर्मियों की अन्यत्र ड्यूटी लगाना ही पूरी तरह से अवैध है। शासन इस मामले में आईजी जेल द्वारा की गई कार्यवाही का संज्ञान लेकर इसकी जांच कराकर आईजी जेल के खिलाफ कोई कार्यवाही करेगा। यह सवाल विभागीय अधिकारियों में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसको लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।

मिली जानकारी में नए जेल मैनुअल में कारागार विभाग के पदों का सृजन किया गया है। विभाग का मुखिया प्रमुख सचिव/ महानिदेशक कारागार बनाया गया है। इसके अलावा अपर महानिरीक्षक कारागार और अपर महानिरीक्षक कारागार (प्रशासन), उपमहानिरीक्षक मुख्यालय, वरिष्ठ अधीक्षक और अधीक्षक मुख्यालय के पद सृजित किए गए है। इसमें महानिरीक्षक कारागार कोई पद ही सृजित नहीं किया गया है।

ड्यूटी पर लगाए गए अफसर नहीं हटाए गए!

आईजी जेल ने अपने कार्यकाल के दौरान जेल मुख्यालय के दो बाबुओं को निलंबित किया। इसके अलावा करीब आधा दर्जन अधिकारियों की विशेष ड्यूटी पर लगाया है। इसमें गाजियाबाद के जेलर और डिप्टी जेलर को जौनपुर और कासगंज में तीन माह के लिए विशेष ड्यूटी पर लगाया। इसके साथ ही बाराबंकी के जेलर को गाजियाबाद, गाजियाबाद के जेलर को नोएडा और नोएडा के जेलर को बाराबंकी जेल पर तीन माह के लिए विशेष ड्यूटी पर लगाया। इस अधिकारियों को तीन माह पूरा होने के बाद आज तक हटाया नहीं गया है। इस संबंध में जब आईजी जेल पीवी रामा शास्त्री से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उनका फोन ही नहीं उठा।

सूत्रों का कहना है कि नए जेल मैनुअल में विभाग के अधिकारियों, कर्मियों का ट्रांसफर, निलंबन और अस्थाई ड्यूटी लगाने का अधिकार महानिदेशक कारागार को दिया गया है। शासन ने आईजी जेल को तैनात तो किया है लेकिन विभागीय कर्मियों के ट्रांसफर, निलंबन और ड्यूटी लगाने का अधिकार नहीं दिया है। सूत्रों के मुताबिक वर्तमान समय में महानिदेशक कारागार का प्रभार किसी भी अधिकारी के पास नहीं है। ऐसे में कार्यवाही और ड्यूटी लगाये जाने पर सवाल खड़े हो गए हैं। मामला अनुशासन से जुड़ा होने की वजह से विभागीय अधिकारी और कर्मचारी इसका विरोध करने का साहस नहीं उठा पा रहे है। कयास तो यह भी लगाए जा रहे हैं कि आईजी जेल की कृत कार्यवाही के विरोध में यदि दंडित किए गए अधिकारी और कर्मी न्यायालय की शरण में चले गए तो कार्यवाही धरी की धरी रह जाएगी और दंडित अधिकारियों को राहत भी मिल जाएगी।